By Kiran Bhatia

शिवमहिम्नःस्तोत्रम् महिम्नः पारन्ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः। अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येशस्तोत्रे हर ! निरपवादः परिकरः।। १।। शब्दार्थ एवं संधि-विच्छेद महिम्नः = महिमा पारं = पार ते = आपकी परमविदुषः = बड़े विद्वान यदि +असदृशी = यद्यसदृशी यदि = अगर असदृशी = अनुचित स्तुतिः +ब्रह्मादीनाम् +ब्रह्मादीनाम् अपि = स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि स्तुतिः= स्तवन ब्रह्मादीनाम् = ब्रह्मादिकों …

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शिवमहिम्न:स्तोत्रम्

शिवमहिम्नःस्तोत्रम् काशीराज के उद्यान से सुंदर-सुगन्धित पुष्प प्रतिदिन चुरा कर ले जाने वाले गन्धर्वराज, शिव-निर्माल्य पर पैर पड़ जाने से, शिवकोप के भागी बन कर गन्धर्व-पद से भ्रष्ट हो जाते हैं व अपनी भूल का ज्ञान होने पर बड़े आर्त्त भाव से भगवान शिव का स्तवन -गायन करते हैं, जिसके फलस्वरूप वे क्षमा के साथ-साथ …

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`शिवमहिम्नःस्तोत्रम्`: दो शब्द

`शिवमहिम्नःस्तोत्रम्` गंधर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की अपार, अनिर्वचनीय महिमा का गान किया गया है । इस स्तोत्र की रचना के साथ एक सुन्दर कथा अनुस्यूत है । काशी में चित्ररथ नामक एक राजा हुए, जो परम नैष्ठिक शिवभक्त थे । वे प्रतिदिन शिवपूजन करते हुए अपने राजोद्यान से लाये हुए …

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शिवमहिम्नःस्तोत्रम् – मूल पाठ एवं अन्वय

महिम्नःपारन्ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः । अथावाच्यः सर्व: स्वमतिपरिणामावधि गृणंन् ममाप्येषस्तोत्रे हर ! निरपवादः परिकरः ।। १ ।। अन्वय : हर ! यदि ते महिम्नः परं पारं अविदुषः स्तुतिः असदृशी, तद् ब्रह्मदिनाम् अपि गिरः त्वयि अवसन्नाः। अथ स्वमति परिणामावधिः गृणन् सर्वः अवाच्यः, (अतः) मम एपीआई स्तोत्रे एष परिकरः निरपवादः। अतीतः पन्थानं तव च महिमा …

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