महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम्

व्याख्या

सर्वप्रथम श्री शंकराचार्य रचित महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम् का मूलपाठ दे कर, देवी तथा महिषासुर की कथा को संक्षेप में बताया गया है । तत्पश्चात् इस स्तोत्र के सभी इक्कीस श्लोकों का भावार्थ देते हुए पंक्ति प्रति पंक्ति इनकी व्याख्या प्रस्तुत की गई है । इसे सरल और सुबोध बनाने के लिए शब्दार्थ (एवं जहां आवश्यकता प्रतीत हुई वहां संधि-विच्छेद भी) व्याख्या के भीतर ही समाहित कर लिए गए हैं ।

अनुक्रमणिका

Table of Contents

श्लोक १ अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते …
श्लोक २ सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते …
श्लोक ३ अयि जगदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि तोषिणि हासरते …
श्लोक ४ अयि निजहुंकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते …
श्लोक ५ अयि शतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते …
श्लोक ६ धनुरनुषंगरणक्षणसंगपरिस्फुरदंगनटत्कटके …
श्लोक ७ अयि रणदुर्मदशत्रुवधाद्धुरदुर्धरनिर्भरशक्तिभृते …
श्लोक ८ अयि शरणागतवैरिवधूजनवीरवराभयदायिकरे …
श्लोक ९ सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते …
श्लोक १० जय जय जाप्यजये जयशब्दपरस्तुतितत्परविश्वनुते …
श्लोक ११ अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोरमकान्तियुते …
श्लोक १२ महितमहाहवमल्लमतल्लिकवल्लितरल्लितभल्लिरते …
श्लोक १३ अयि सुदतीजन लालसमानसमोहनमन्मथराजसुते …
श्लोक १४ कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकलितामलभाललते …
श्लोक १५ करमुरलीरववर्जितकूजितलज्जितकोकिलमंजुमते …
श्लोक १६ कटितटपीतदुकूलविचित्रमयूखतिरस्कृतचण्डरुचे …
श्लोक १७ विजितसहस्रकरैकसहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते …
श्लोक १८ पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योsअनुदिनम् सुशिवे …
श्लोक १९ कनकलसत्कलशीकजलैरनुषिंचति ते अंगणरंगभुवम् …
श्लोक २० तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं कलयन्ननुकूलयते …
श्लोक २१ अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे …
श्लोक २२ स्तुतिमिमां स्तिमित: सुसमाधिना नियमतो यमतोsनुदिनं पठेत् …

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10 comments

  1. नितेश सिन्हा says:

    अति सुन्दर व्याख्या। जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।

    • Kiran Bhatia says:

      धन्यवाद । भगवती पूर्णकामा हैं, अपने बच्चों की मनोवांछा को पुष्पित-पल्लवित वे स्वयं करती हैं । इति शुभम् ।

  2. csbhatt says:

    बहुत सुंदर व्याख्या ..साधुवाद ..
    सिद्ध कुजीकाशलोको का भी कर देती तो अति अनुकम्पा होती …?

    • Kiran Bhatia says:

      अभी हाथ में लिया हुआ कार्य समाप्त हो जाने के पश्चात् ही इस पर विचार किया जा सकता है । धन्यवाद ।

  3. जय सिंह says:

    सादर प्रणाम?देवी मां आपकी हमेशा सहायता करे। मैने आपके द्वारा कि गई व्याख्या को पूरा पढ़ा है। कुछ वाक्यों का आप शब्दार्थ कर दे तो मै आपका आभारी रहूंगा जो कि इसी स्त्रोत से सम्बन्धित है। 1) यदुचितमत्र भवत्युररी कुरूतादुरूता पमपा कुरूते । 2) परम्पदमित्यनुशीलयतो। 3) शत्रुवधोदित ।

    • Kiran Bhatia says:

      आदरणीय जय सिंहहजी, आपकी शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद । आपके द्वारा पूछे गये शब्द हमारे पाठ में नहीं हैं । अस्तु, पहले वाक्यांश का भावार्थ होगा कि जैसे आप उचित समझें वैसे मेरे पाप-ताप को दूर करें । उररी कृत से अभिप्राय है कि स्वीकार करें, दूसरे शब्दों में यह कि उचित समझें और पाप-ताप दूर करना स्वीकार करें । मेरी तुच्छ समझ के अनुसार दूसरे का अर्थ होगा परमपद अर्थात् मोक्ष पाने के लिये अनुशीलन यानि सतत प्रयास करता हुआ एवं शत्रुवधोदित यानि शत्रु के वध के लिये उत्थित । इति शुभम् ।

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