महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम्
श्री शंकराचार्य द्वारा रचित महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम् का मूल पाठ देते हुए, आरम्भ में देवी और महिषासुर की कथा को संक्षेप में बताया गया है । तत्पश्चात् भावार्थ देते हुए उसकी व्याख्या की गई है, जिसमें संबद्ध कथाएं भी संक्षेप मे दी गई हैं ।
महामृत्युंजय मन्त्र
`महामृत्युंजय मन्त्र` ऋग्वेद के सातवें मण्डल के उनसठवें सूक्त का पहला मन्त्र है । इसमें वैदिक ऋषि त्रयम्बक देव से पीड़ाविहीन मृत्यु की प्रार्थना करते हुए, मृत्युभय से सदा के लिए मुक्त होने की व रुद्रदेव के अमृत-पदों की, परमपद-प्राप्ति की अपनी वांछा को व्यक्त करते हैं ।
शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
काशीराज के उद्यान से सुंदर-सुगन्धित पुष्प प्रतिदिन चुरा कर ले जाने वाले गन्धर्वराज, शिव-निर्माल्य पर पैर पड़ जाने से, शिवकोप के भागी बन कर गन्धर्व-पद से भ्रष्ट हो जाते हैं व अपनी भूल का ज्ञान होने पर बड़े आर्त्त भाव से भगवान शिव का स्तवन -गायन करते हैं, जिसके फलस्वरूप वे क्षमा के साथ-साथ अपना पद-गौरव भी पुन:प्राप्त करते हैं । ४३ श्लोकों से सजी, गन्धर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित यही स्तुति वस्तुत: ‘शिवमहिम्न:स्तोत्रम्’ है ।
मेरी रचनाएं
इस विभाग में मेरी कुछ धार्मिक एवं कुछ पौराणिक कथाओं पर आधृत कविताएं हैं । कतिपय विविध विषय हैं । प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों ने अभिव्यक्ति के मेरे खर्व प्रयासों को संश्रय दिया है और वे जल-सतह पर तिरते सूखे पत्तों के सदृश मेरी मनःस्थितियों के सलिल में प्रवहमान होते हुए दृष्टिगोचर होते हैं ।