अंतस्सागर

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पलक-पल्लव से बहा पराग
अंकुरित हुआ मधुर संवाद

अस्फुट स्वरों का संकुल जाल
मधुछंदों में लिपटा-सा एक बार

श्वास-तटांत-शिला पर दुर्वार
उत्ताल तरंगों का भीम प्रवाह

मुंदी पलकों ने क्या लिया निहार
अन्तस् का सागर भर उठा हुंकार !

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