शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
श्लोक ६
Shloka 6 Analysisअजन्मानोलोकाः किमवयववन्तोsपि जगतामधिष्ठातारं
किं भवविधिरनादृत्य भवति ।
अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने कः परिकरो
यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरते इमे ।।६।।
अजन्मानोलोकाः | → | अजन्मान: + लोका: |
अजन्मान: | = | जन्मरहित |
लोका: | = | पृथ्वी व स्वर्ग आदि लोक |
किमवयववन्तोsपि | → | किम् + अवयववन्त: + अपि |
किम् | = | क्या |
अवयववन्त: | = | अवयव सहित |
अपि | = | भी |
जगतामधिष्ठातारं | → | जगताम् + अधिष्ठातारम् |
जगताम् | = | आदि चौदह लोकों के |
अधिष्ठातारम् | = | कर्ता , रचनाकार |
भवविधिरनादृत्य | → | भवविधि: + अनादृत्य |
भवविधि: | = | जगत के रचना आदि कार्य |
अनादृत्य | = | बिना |
अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने कः परिकरो | ||
अनीश: (अन् + ईश:) | = | ईश्वर से भिन्न कोई और ( व्यक्ति या सत्ता ) |
वा | = | या कहा जाये कि |
कुर्याद् | = | कर सकता है ? |
भुवनजनने | = | लोकों के उत्पन्न करने में |
क: | = | कौन |
परिकर: | = | साधन सामग्री, सहायक |
यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरते इमे | ||
यत्: | = | इसलिये |
मन्दास्त्वाम् | = | मन्दा: + त्वाम् |
मन्दा: | = | मंदबुद्धि ( व मंदभाग्य ) |
त्वाम् | = | आपके |
प्रत्यमरवर | = | प्रति + अमरवर |
प्रति | = | ( आपके ) विषय में |
अमरवर | = | देवों में श्रेष्ठ |
संशेरते | = | संशय करते हैं |
इमे | = | ये |
अन्वय
भावार्थ
हे देवों में श्रेष्ठ ! ये पृथ्वी आदि लोक अवयववान ( सावयव ) होने पर भी क्या जन्म-रहित हो सकते हैं ? क्या जगत की रचना आदि का कार्य भू आदि लोकों के कर्ता के बिना ही हो सकता है ? या कहाजाये कि ईश्वर से भिन्न कोई और व्यक्ति या जीव इसे करने वाला हो सकता है तो लोकों को उत्पन्न करने के हेतु ( उसके पास ) कौन सी साधन-सामग्री है ? इसलिये वे मंदबुद्धि ही हैं व आपके विषय में संशय करते हैं ।
व्याख्या
भगवान शिव की स्तुति करते हुए स्तोत्रकार कहते हैं कि हे देवश्रेष्ठ ! यह पृथ्वी आदि लोक सावयव अर्थात् अवयव सहित हैं । अवयव का अर्थ है अंग , घटक । यहाँ यह बताना अप्रासंगिक न होगा कि लोक तीन कहे जाते हैं , जैसे त्रिभुवन , त्रिलोक या फिर चौदह कहे जाते हैं , जैसे लोक चतुर्दश, चौदह भुवन आदि । भूलोक, अन्तरिक्ष व द्युलोक ‘ भुवनत्रयम् ‘ कहलाते हैं , दूसरे रूप में इन्हें स्वर्गलोक , भूलोक व पाताललोक कहा जाता है । अब अपने अपने अंगों सहित यह सब लोक अथवा अवलोकन में आने वाले सब पदार्थ , क्या जन्मरहित हो सकते हैं , अर्थात् नहीं हो सकते ।यह संभव ही नहीं कि इनकी उत्पत्ति न हुई हो । गन्धर्वराजका तात्पर्य है कि जो पदार्थ सावयव हैं, अपने अंगों और घटकों के सहित हैं , वे सब उत्पन्न हुए हैं , उनकी उत्पत्ति निश्चित है । क्या उत्पत्ति बिना उत्पत्तिकर्ता के संभव है ? ऐसा नहीं हो सकता इसलिये इस समूची रचना का कोई रचनाकार, कोई कर्ता भी अवश्य है । इस तरह यह लोक जन्मरहित नहीं हैं ।
आगे वे कहते हैं कि क्या कोई सामर्थ्यहीन , क्षुद्र जीव इस अकल्पनीय विराट रचना का करने वाला हो सकता है, अर्थात् नहीं हो सकता । बिना कर्ता के कभी कोई भी कार्य नहीं हो सकता है । और कोई ” अनीश: ” अथवा ईश्वर से भिन्न कोई सामर्थ्यवानों जीव इन लोकों या इस जगत का करने वाला हो सकता है तो इस जगत को उत्पन्न करने के लिये उसके पास कौन सी साधन-सामग्री -संपत्ति है ? अभिप्राय यह कि किसी भी स्रोत व साधन – सामग्री के न होने के कारण वह कर्ता नहीं हो सकता । यहाँ संपत्ति से बुद्धि-वैभव और साधन से तर्क आदि भीअभिप्रेत किया जा सकता है ।
आगे नास्तिक जनों को लक्ष्य में रखते हुए गन्धर्वराज उन्हें मंदबुद्धि मंदभाग्य भी पुकारते हुए कहते हैं कि ऐसे लोग सदैव आपके विषय में संशयात्मा बने रहते हैं ।
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भाटिया जी
आपका धन्यवाद।
महान दुर्लभ तथा रहस्यमय पदो पर सरल शब्दो में व्याख्या करना चुनौतीपूर्ण है।
वैसे शिवमहिम्न एक बड़ा स्तोत्र है, आपने केवल ६ पदो में इसका समापन कर दिया। आश्चर्य है।
मान्यवर, शिवमहिम्न:स्तोत्रम् पर कार्य में अवश्य विलम्ब हुआ है किन्तु महादेव की अहैतुकी कृपा से कार्य पुन: प्रगति पर है । बहुत शीघ्र सातवां तथा आठवां श्लोक भी प्रकाशित होने वाला है । ६ पदों के बाद आगे के लिये जो आश्चर्यमिश्रित लगाव आपने कृपापूर्वक प्रकट किया है, वह प्रसन्नता का विषय है । अविलम्ब सब्स्क्रिप्शन की सुविधा भी हम जोड़ने जा रहे हैं, ताकि नई सामग्री पब्लिश होने पर सुधी पाठकगण उसकी तुरंत सूचना पा सकें । इति शुभम् ।
Ok
शुभस्य शीघ्रं ।।
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