शिवमहिम्नःस्तोत्रम्

श्लोक ३३

Shloka 33 Analysis

असुरसुरमुनीन्द्रैर्रचितस्येन्दुमौले- (मौले:)
र्ग्रथितगुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य ।
सकलगुणवरिष्ठ: पुष्पदन्ताभिधानो
रुचिरमलघुवृत्तै: स्तोत्रमेतच्चकार ॥ ३३ ॥

असुरसुरमुनीन्द्रैर्रचितस्येन्दुमौले- (मौले:)
असुरसुरमुनीन्द्रैर्रचितस्येन्दुमौले असुरसुरमुनीन्द्रै: + अर्चितस्य + इन्दुमौले:
असुरसुरमुनीन्द्रै: = राक्षस, देवता व मुनीश्वरों से
अर्चितस्य = पूजित
इन्दुमौले: = (भगवान्) चन्द्रशेखर की
र्ग्रथितगुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य
र्ग्रथितगुणमहिम्नो र्ग्रथितगुण + महिम्न:
र्ग्रथितगुणमहिम्नो = (पिछली पंक्ति का विसर्ग र् बन कर जुड़ा है)
ग्रथितगुणमहिम्न: = गुण-गुम्फित महिमा से युक्त
निर्गुणस्येश्वरस्य निर्गुणस्य + ईश्वरस्य
निर्गुणस्य = निर्गुण (ईश्वर) की
ईश्वरस्य = परमेश्वर की
सकलगुणवरिष्ठ: पुष्पदन्ताभिधानो
सकलगुणवरिष्ठ: = सर्वगुणसंपन्न, सर्व गुणों से अलंकृत
पुष्पदन्ताभिधान: = पुष्पदन्त नामक (गन्धर्वराज) ने
रुचिरमलघुवृत्तै: स्तोत्रमेतच्चकार
रुचिरमलघुवृत्तै: रुचिरम् + अलघु+ वृत्तै:
रुचिरम् = मनोहर
अलघु = बड़े
वृत्तै: = छन्दों से (युक्त)
स्तोत्रमेतच्चकार स्तोत्रम् + एतत्+ चकार
स्तोत्रम् = स्तुति को
एतद् = इस
चकार = रचा (बनाया)

अन्वय

असुरसुरमुनीन्द्रै: अर्चितस्य इन्दुमौले: ग्रथितगुणमहिम्न: निर्गुणस्य ईश्वरस्य एतद् रुचिरम् स्तोत्रम् पुष्पदन्ताभिधान: सकलगुणवरिष्ठ: अलघु वृत्तै: चकार ।

भावार्थ

बड़े बड़े मुनि-मुनीश्वर तथा देवता व असुर जिनकी पूजा-अर्चा करते हैं, जो गुणों से गुम्फित महिमा वाले हैं, निर्गुण हैं, परमेश्वर हैं, ऐसे भगवान् चन्द्रमौलि के इस मनोहारी स्तोत्र की पुष्पदन्त नामक सर्वगुणसंपन्न गन्धर्वराज ने बड़े छन्दों में रचना की है ।

व्याख्या

प्रस्तुत श्लोक में शिवमहिम्न:स्तोत्रम् के स्तुतिकार का नाम आता है । भगवान् चन्द्रमौलि के परम भक्त गन्धर्वराज पुष्पदन्त आचार्य द्वारा यह स्तोत्र रचित है । श्लोक के वर्णनानुसार देवता, असुर व बड़े बड़े ऋषि मुनि (मुनीश्वर) भगवान् चन्द्रशेखर की अर्चा (पूजा) करते हैं अतएव असुरसुरमुनीन्द्रैर्रचितस्य कहा । इन्दुमौलि का अर्थ है, इन्दु (चन्द्र) को शीश पर धारण करने वाले । और ऐसे उनके परमाराध्य (परम आराध्य) इन्दुमौलि की महिमा सकल गुणों से गुच्छित-गुम्फित है । जैसे पुष्पगुच्छ में पुष्प एकत्रित व जुड़े होते हैं,  कुछ इस तरह वे महादेव की महिमा को गुणगु्च्छ की भाँति वे देखते है, जहां गुणों का संचयन व संनयन है । ऐसी गुण-राशि से अन्तर्जटित अथवा ग्रथित है शिवजी की महिमा । इसीसे ग्रथितगुणमहिम्नो कहा । तात्पर्य यह है कि शिवजी की महिमा गुणों से युक्त है । वे गुणसागर हैं । यहां गुण से उनके सगुण रूप का भी संकेत मिलता है । भक्तों को उनका शीश पर चन्द्रमा धारण किये हुए, सर्पमाल, त्रिनयन रूप प्रकारान्तर से सगुण-साकार रूप मनोहारी लगता है व उनमें भक्ति का उद्रेक करता है । महादेव का सगुण विराट रूप भी उनकी अपार महिमा का एक नन्हा-सा मधुकण है । वे लीलाविशारद प्रभु लीला रचाने के लिये अपनी माया से सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण धारण करते हैं और क्रमश: शान्त, घोर व संहारक रूप में दिखाई देते हैं । गुणयुक्त कहने के उपरान्त अगले शब्द में उन्हें निर्गुण ईश्वर भी कहा गया है — निर्गुणस्येश्वरस्य । निर्गुण विशेषण कवि के आराध्य के गुणातीत रूप को प्रकाशित करता है, जहां वे तीनों गुणों से परे हैं । साथ ही उन्हें ईश्वर कहा है । ईश्वर अर्थात् परमेश्वर तो वे हैं ही — जगत् के परम नियन्ता व सबके स्वामी ।

श्लोक के तृतीय पाद अर्थात् तीसरी पंक्ति में स्तुतिकार का नाम आता है — पुष्पदन्ताभिधानो अर्थात् पुष्पदन्त नाम वाले । अभिधानम् का अर्थ है नाम । यह स्तोत्र गन्धर्व द्वारा रचित है, इससे  पुष्पदन्ताभिधान: से अभिप्राय है पुष्पदन्त नामक गन्धर्व । वे गन्धर्वराज भी कहे जाते हैं । इन्हें सकलगुणवरिष्ठ: कहे जाने से तात्पर्य है कि वे सर्वगुणसंपन्न हैं, सभी उत्तम गुणों से विभूषित हैं वे । कहीं कहीं पाठ भेद से सकलगणवरिष्ठ: भी लिखा हुआ मिलता है । ऐसी स्थिति में इसका अर्थ होगा — सभी गणों में सर्वाधिक श्रेष्ठ अर्थात् भगवान् शिव के सेवकों में सर्वश्रेष्ठ । तृतीय व चतुर्थ पाद में कहा गया है कि पुष्पदन्त नामक सर्वगुणभूषित ने यानि सर्वगुणभूषित गन्धर्व ने बड़े छन्दों में इस मनोहारी स्तोत्र को रचा ।

यह स्तोत्र शिव की गुणमहिमा से गुम्फित है । उनके गुण, उनकी महिमा इस स्तुति में अन्तर्जटित है ।

श्लोक ३२ अनुक्रमणिका श्लोक ३४

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