मयूर-क्रीड़ा

स्खलित हो गई
कर से
चित्रकार के
नीले रंग की कुप्पी
और फैल गई फिर
चित्र-फलक पर
श्यामल नीलिमा ।
सजीव हो उठे
स्वप्निल नीले रंग
हो कर मयूराकार-आकारित
फिर
निमग्न हुए क्रीड़ा में वे
पल-पल प्रफुल्लित ।

केका-ध्वनि से अपनी
कानन की
कर्ण-पल्ली को
वे करते गुंजरित ।
मृदुल तृणों ने
विस्मित हो कर हर्ष से
निज नन्ही पलकें
झपकीं
देख युगल-खेल की
तरुण-तन्मय झलकी ।

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