श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई २३
Chaupai 23 Analysisआपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तें कांपै ॥ २३ ॥
आपन तेज सम्हारो आपै | ||
आपन तेज | = | अपना तेज और ओज |
सम्हारो | = | संभालिये |
आपै | = | स्वयं |
तीनों लोक हाँक तें कांपै | ||
तीनों लोक | = | स्वर्ग, पृथ्वी व पाताल लोक |
हांक तें | = | गर्जना से, हुंकार से |
कांपै | = | थर्रा जाते हैं |
भावार्थ
आपका तेज प्रचण्ड है, इसे आप ही संभालिये प्रभो ! आपकी गर्जना से तीनों लोक भय से थर्रा जाते हैं ।
व्याख्या
हनुमानजी का तेज व वेग प्रचण्ड है, वे रुद्र के अंश हैं और पवनपुत्र भी पवनतनय बल पवन समाना अर्थात् पवनपुत्र का बल पवन के समान प्रबल है । वे वेग में विष्णुवाहन गरुड़ से भी अधिक वेगवान हैं । किन्तु वे अपने विपुल बल और तेज पर संयम रखते हैं । रावण, कुम्भकर्ण आदि दुर्दान्त राक्षसों को मार देने का पूरा सामर्थ्य हनुमानजी के पास था, किन्तु वे उन्हें श्रीराम के हाथों निपटा देने के हेतु उन्हें ललकार कर, गरज कर फिर छोड़ देते थे । वे अपना बहुत कम बल दिखाते हैं, अपनी मर्यादा का कड़ाई से पालन करते हैं ।इस प्रकार महातेजस्वी मारुति अपने तीक्ष्ण तेज और अपने असीम बल का प्रयोग संभल कर, समझ कर विवेक के साथ करते हैं ताकि उनके स्वामी, उनके आराध्य रामजी की कीर्ति का विस्तार हो । यही मर्यादा वे वानरराज सुग्रीव के साथ भी रखते हैं । अन्यथा उनकी तो एक हांक अर्थात् गर्जना ही तीनों लोकों को कंपा देने के लिये पर्याप्त है । रामचरितमानस में अनेक स्थलों पर बजरंग बली की गर्जना के प्रसंग आते हैं । एक उदाहरण लंका-काण्ड से यह है —
अर्थात् हनुमानजी और अंगदजी रण में गरजे और उनकी हाँक सुन कर रजनीचर यानि राक्षस भागे । सुन्दर काण्ड में प्रसंग आता है कि वे लंका से जब लौटने लगते हैं तब महाधुनि अर्थात् महाध्वनि से भीषण गर्जन करते हैं, जिसे सुनकर भयभीत राक्षस नारियों के गर्भ गिर जाते हैं । अतएव गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि तीनों लोक हांक ते काँपे ।
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Jay Kashtbhanjan Dada
जय श्रीराम ।
कृपया ‘कांपे’ के स्थान पर ‘कांपै’ करें 🙏
कर दिया है । धन्यवाद ।
कुछ लोगों ऐसे होते हैं जो दूसरे के गुणों में दोषों को ही ढूंढते रहते हैं, उनमें से मैं भी एक मूर्ख हूं। मुझे लगता है कि शब्द ‘ते’ के ऊपर बिंदी (अनुस्वार) होना चाहिए – हाँक तें काँपै॥
महोदय, आप एक सुधी और सजग भक्त पाठक हैं तथा पूरे मनोयोग से पढ़ रहे हैं । अतएव पाठ की अशुद्धियां आपके आगे ऊपर तिरती हुईं आ रही हैं । हमें भी यथाशक्ति पाठ को शुद्ध रखने में सहायता मिल रही है । ‘तें’ कर दिया गया है । धन्यवाद ।