श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई ३३

Chaupai 33 Analysis

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावैा ॥ ३३ ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
तुम्हरे भजन = आपके भजन
राम के पावैं = राम से मिलवाते हैं
जनम जनम के दुख बिसरावै
जनम जनम के = अनेक जन्मों के
दुख बिसरावैं = दु:ख भुला देते हैं

भावार्थ

आपके भजन-पूजन से राम मिलते हैं । अनेक-अनेक जन्मों के दु:ख भूल जाते हैं ।

व्याख्या

तुलसीदासजी रामदुलारे हनुमानजी से कहते हैं कि आपका भजन-पूजन करने वाले को राम मिलते हैं । आपके पास हे प्रभो ! राम स्वयं हैं, उनके द्वार के आप रखवाले हैं । आपकी उपासना जीव को राम से मिलवाती है तथा जीव के साथ लगे हुए जन्म जन्मान्तरों के दु:ख छूट जाते हैं । यह बात रामचन्द्रजी ने रामचरितमानस के सुन्दर काण्ड में कहीं है—

सनमुख होई जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं ताहीं ॥
अर्थात् जीव जब मेरे सामने आ जाता है, उसके करोड़ों जन्म के पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं । इस प्रकार रामजी की शरण में भेज कर आपका भजन-कीर्तन पिछले जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप मिलने वाले दु:खों को भुलवा देता है ।
चौपाई ३२ अनुक्रमणिका चौपाइ ३४

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