श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ४०
Chaupai 40 Analysisतुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा ॥ ४० ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा | ||
तुलसीदास | = | तुलसीदास की (मेरी) विनती है कि |
सदा हरि चेरा | = | सदा सदा के लिये हरि का दास |
कीजै नाथ हृदय महं डेरा | ||
कीजै नाथ | = | कीजिये हे नाथ ! |
हृदय मंह डेरा | = | (मेरे) हृदय में बसेरा |
भावार्थ
सदा हरि की सेवा में रत रहने वाले हे हरिसेवक ! यह तुलसीदास आपसे विनय करता है अर्थात् मैं आपसे विनय करता हूँ कि आप मेरे हृदय में डेरा डाल दीजिये अर्थात् स्थायी रूप से मेरे हृदय में बस जाइये ।
व्याख्या
कविता या भजन की अंतिम पंक्ति में कवि द्वारा अपना नाम लिखना पुरानी परम्परा है, जैसे सूरदास के पद में सूरदास तब बिहंसी जसोदा लै उर कंठ लगायो तथा कबीरदास की साखी में क़हत कबीर सुनो भई साधो ! इसी तरह गोस्वामीजी अंतिम चौपाई में अपना नाम लिख कर कहते हैं कि हरि का सदा से सेवक यह तुलसीदास आपसे विनय करता है यानि मैं आप से विनय करता हूं कि हे नाथ ! आप मेरे हृदय में डेरा कर लीजिये अर्थात् बसेरा कर लीजिये । हे स्वामी ! सदा सदा के लिये बस जाइये मेरे हृदय में । इस पर अपना प्रभुत्व जमा लें और हे स्वामी ! इसे कभी न छोड़ें । डेरा डालना मुहावरा है, जिसका कहीं जाकर बस जाना या कहीं जाकर जम जाना ।
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