श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई १६
Chaupai 16 Analysisतुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥ १६ ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा | ||
तुम उपकार | = | आपने उपकार |
सुग्रीवहिं | = | सुग्रीव पर |
कीन्हा | = | किया |
राम मिलाय राज पद दीन्हा | ||
राम मिलाय | = | राम से मिलवा कर |
राज पद | = | राज्य पद |
दीन्हा | = | दिया |
भावार्थ
आपने सुग्रीव पर उपकार किया । आपने श्रीरामचंद्र से सुग्रीव को मिलवाया जिससे सुग्रीव को राज्य प्राप्त हुआ । इस प्रकार आपने सुग्रीव को राज पद दिया, अर्थात् प्राप्त करवाया ।
व्याख्या
पर्वतशिखर और वनों में घूम घूम कर सीताजी की खोज करते हुए प्रभु श्रीराम से सुग्रीव को मिलवाने वाले हनुमानजी ही हैं । अन्यथा बालि द्वारा प्रताड़ित सुग्रीव तो ऋष्यमूक पर्वत पर पहलेपहल राम-लक्ष्मण को विचरता देख उन्हें बालि का गुप्तचर समझ कर भयभीत हो गये थे । हनुमानजी उनके कहने पर विप्ररूप धर कर राम-लक्ष्मण से मिले व उनका परिचय पाकर प्रभु के चरण पकड़ लिये । उस समय हनुमानजी निज तनु प्रगट करके वानर रूप में आ गये । वे सुग्रीव के सचिव व सेवक थे । कपिपति सुग्रीव का परिचय श्रीराम को देकर हनुमानजी ने निवेदन किया कि तेहि सन नाथ मयत्री कीजे ।दीन जानि तेहि अभय करीजे ॥ उनकी पूरी कथा सुना कर राम-लक्ष्मण को पीठ पर चढ़ा कर पवनपुत्र सुग्रीव के पास ले गये तथा दोनों को एक-दूसरे की कथा सुनाई । इसके उपरान्त अग्नि प्रज्वलित करके अग्निसाक्षी देकर दोनों की पक्की मैत्री करवायी—
पावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढाइ ॥
राम व सुग्रीव की मैत्री के बाद बालि-वध का प्रसंग व सुग्रीव के किष्किन्धा के राजा बनने की घटना व और घटनाओं से इस कथा का कलेवर बड़ा हो जाता है । अत: संक्षेप में कहें तो इस प्रकार पवनपुत्र ने सुग्रीव को राजपद दिलाया व वे वानरराज सुग्रीव कहलाये । इसीलिये तुलसीदासजी हनुमानजी से कहते हैं कि आपने सुग्रीव पर उपकार किया ।
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