श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ११
Chaupai 11 Analysisलाय सजीवन लखन जियाये
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ ११ ॥
लाय सजीवन लखन जियाये | ||
लाये सजीवन | = | संजीवनी बूटी ले आये |
लखन जियाये | = | लक्ष्मण को जीवित किया गया |
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये | ||
श्रीरघुबीर | = | रघुवंश के वीर श्रीराम |
हर्षित | = | प्रसन्न हो कर |
उर लाये | = | हृदय से लगा लिया |
भावार्थ
आप लक्ष्मणजी के लिये संजीवनी बूटी ले कर आये और उन्हें जीवित किया गया । इस तरह आपके प्रताप से लक्ष्मणजी को जिलाया गया अर्थात् उन्हें नवजीवन मिला । श्रीरघुवीरजी ने तब प्रसन्न होकर आपको अपने हृदय से लगा लिया ।
व्याख्या
श्रीरामचंद्र के सेवक बन कर हनुमानजी ने कठिन से कठिन कार्य संपन्न किये । राम-रावण युद्ध में लक्ष्मणजी मेघनाद की ब्रह्माजी द्वारा दी गई अमोघ शक्ति के आघात से मूर्च्छित हो गये थे और उनके प्राणों पर सकंट आ गया था, तब श्ररीघुनाथजी के कहने पर वे लंका में वैद्य सुषेण को लाने चले गये । उन्होंने अत्यन्त छोटा रूप धारण करके लंका में प्रवेश किया । वहां इस संदेह से कि वैद्य सुषेण कहीं साथ चलना अस्वीकार न कर दें, हनुमानजी ने समय नष्ट न करते हुए सुषेण का पूरा भवन ही समूल उखाड़ लिया व उसे आकाश-मार्ग से वे श्रीरघुनन्दन के पास लेकर आ गये । सुषेण द्वारा उनकी प्राणरक्षा के लिये संजीवनी बूटी का उपाय बताया गया । उस समय प्रभु श्रीराम की आज्ञा से हनुमानजी द्रोणगिरि के शिखर पर गये किंतु संजीवनी औषध को न पहचान पाये । उस स्थिति में जबकि उन्हें सूर्योदय से पहले प्रभु के पास पहंचने की त्वरा (जल्दी) थी, हनुमानजी ने किसी ऊहापोह में समय को नष्ट नहीं किया तथा अपने बाहुबल से वे विशाल द्रोणाचल को ही उखाड़ कर ले आये । तब लक्ष्मण के शल्य की चिकित्सा की गई, जिससे उनकी घोर मूर्च्छा दूर हुई और उनके प्राणों की रक्षा हुई । अत: तुलसीदासजी ने स्तुति करते हुए कहा कि लाये सजीवन लखन जियाये । श्रीहनुमानद्वादशनाम स्तोत्र में हनुमानजी के १२ पवित्र नाम हैं, जिनमें से एक नाम है लक्ष्मणप्राणदाता । लक्ष्मण को नवजीवन मिलने पर श्रीरघुवीरजी अत्यधिक प्रसन्न हुए व हनुमानजी को अपने हृदय से लगा लिया ।
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