श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई १५

Chaupai 15 Analysis

जम कुबेर दिगपाल जहां ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥ १५ ॥

जम कुबेर दिगपाल जहां ते
जम = यमराज
कुबेर = धन के देवता व उत्तर दिशा के स्वामी
दिग्पाल = दिशाओं के स्वामी
जहां ते = जहां तक
कबि कोबिद कहि सके कहां ते
कबि = कवि
कोबिद = कोविद, विद्वान
कहि सके = कह सकते है
कहां ते = कहां तक

भावार्थ

जहां तक आपकी महिमा के वर्णन का प्रश्न है यम, कुबेर आदि दिग्पाल भी उसे कहने में समर्थ नहीं हैं तो विद्वान कवि कहाँ तक उसे कह सकते हैं ?

व्याख्या

इससे पहले की चौपाई का ही यह भाग है, जिसमें कहा गया है कि सर्वगुणशाली हनुमानजी के गुणों का वर्णन भला कौन कर सकता है । उनका उज्ज्वल यश तो दिशा दिशा में व्याप्त है । हमारी संस्कृति यह मानती है कि प्रत्येक दिशा का एक स्वामी होता है और उसे दिग्पाल कहते हैं । दिक् अर्थात् दिशा व पाल अर्थात् उसका पालक अथवा स्वामी । इस चौपाई में जम कुबेर दिगपाल का उल्लेख आता है । जम अर्थात् यम मृत्यु के देवता हैं तथा वे दक्षिण दिशा के स्वामी हैं । यम ही यमराज और धर्मराज कहलाते हैं । मनुष्य के कर्मों के कठोर न्यायकर्ता होने के अलावा वे परम ज्ञानी हैं तथा द्वादश भागवताचार्यों में से एक हैं । उनका लोक यमलोक है, जहां सभी प्राणियों के कर्मों का विवरण रखा जाता है तथा कर्मों के अनुरूप दण्ड का विधान होता है । गोस्वामी तुलसीदास का कथन है कि वे कारक पुरुष भी आपके यश को पूर्ण रूप से जानने में सक्षम नहीं है ।

जम के बाद चौपाई में कुबेर का नाम आता है । धनाधीश कुबेर संसार के संपूर्ण धन व नौ निधियों के स्वामी हैं । जग में जहां कहीं भी धन है, उसके स्वामी कुबेर हैं । उन्हें धनेश, धनाधिपति व निधिपति भी कहा जाता है । बलवान और उग्र यक्ष इनके अनुचर हैं । यक्षराज कुबेर उत्तर दिशा के स्वामी हैं । महाकवि तुलसीदासजी का कहना है कि हे कपिश्रेष्ठ ! संसार की संपूर्ण निधियों के कारक पुरुष, इतने सशक्त होकर भी, दिक्पाल होकर भी इतनी क्षमता अर्जित नहीं कर पाये कि पूरी तरह आपका सुयश गा सकें ।

इस प्रकार तुलसीदासजी के कहने का तात्पर्य यह है कि हनुमानजी की धवल कीर्ति का विस्तार दिशाओं के भी पार है और दिशाओं के स्वामी भी उनकी यश-महिमा का पार नहीं पा सकते । इसलिये पहली ही चौपाई में उन्होंने यह भाव व्यक्त कर दिया है कि हे ज्ञान और गुणों के सागर हनुमानजी ! तीनों लोक आपके प्रताप से प्रकाशमान हैं —तिहुं लोक उजागर ।

चौपाई १४ अनुक्रमणिका चौपाइ १६

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