श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई ७

Chaupai 7 Analysis

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥ ७ ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर
बिद्यावान = विद्या से युक्त
गुनी = गुणी, गुणों से युक्त
अति = बहुत
चातुर = तेज बुद्धि वाला
राम काज करिबे को आतुर
राम काज = रामजी के कामकाज
करिबे को = करने के लिये
आतुर = सदा तैयार, उत्साही

भावार्थ

आप विद्यावान हैं, गुणी हैं और अत्यंत चतुर हैं । रामचन्द्रजी का कार्य करने के हेतु आप सदा तत्पर रहते हैं ।

व्याख्या

तुलसीदासजी वानरश्रेष्ठ की स्तुति करते हुए कहते हैं कि आप विद्या के धनी हैं । आपके गुण अनन्त हैं । आप चतुर-शिरोमणि  हैं । परिस्थिति चाहे कितनी ही विकट क्यों न हो, उसे तुरन्त पहचान कर शीघ्र ही सही और सटीक निर्णय लेने की चतुराई आपको विशिष्ट बनाती है । लंका जाते समय मार्ग में मिलने वाली बाधाओं का आप तुरन्त, बिना समय खोये बुद्धिबल और बाहुबल से निवारण करते हैं । यहां एक उदाहरण दिया जा रहा है (यह प्रसंग रामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड में आता है) । देवताओं द्वारा आपकी परीक्षा लेने के लिये भेजी गई नागमाता सुरसा द्वारा मार्ग में अवरोध उत्पन्न करने पर पवनपुत्र बड़ी  बुद्धिकौशल से उससे पार पाते हैं । फलत: उनकी चतुराई से प्रसन्न होकर सुरसा उन्हें आशीर्वाद देती है —

कामकाज सब करिहहु तुम बल बुद्ध निधान ।
आसिष देई गई सो हरषि चले हनुमान ॥

तीक्ष्ण बुद्धि वाले हनुमान दुर्गम वनों के ज्ञाता हैं । हनुमानजी वानरदल के साथ जब सीताजी की खोज में निकलते हुए विन्ध्यगिरि के गहन वन में पहुँचते हैं तब सूखे वृक्ष व लताओं से ढँके और काँटों से भरे उस निबिड़ वन में कहीं भी जल न मिलने पर प्यास के मारे सब के प्राणों पर बन आती है । उस समय उन्हें सूखे वृक्षों-लताओं से ढँकी हुई एक गुफा दिखाई देती है, जिसमें से वे पक्षियों को, जिनके पंख गीले थे,बाहर निकलते हुए देखते हैं । उन्हें उसी समय वहाँ जल के मिलने का पक्का अनुमान हो जाता है । फलत: वे सब रीछ-वानरों को लेकर  गुफा के भीतर जाते हैं  तथा वहाँ जाकर वे सब जल और फल आदि प्राप्त कर मानो नया जीवन पा जाते हैं । यह प्रसंग विस्तार से रामचरितमानस में वर्णित है । ऐसे अनेक प्रसंग उनके चरित में आते हैं, जिनसे उनकी कुशाग्र बुद्धि का परिचय प्राप्त होता है ।

चौपाई ६ अनुक्रमणिका चौपाइ ८

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