श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई १४

Chaupai 14 Analysis

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥ १४ ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
सनकादि = सनक, सनत्कुमार, सनन्दन और सनातन नाम के चार ऋषिगण
ब्रह्माण्ड = ब्रह्मा आदि
मुनीसा = मुनीश, बड़े बड़े मुनि
नारद सारद सहित अहीसा
नारद = देवर्षि नारद मुनि
सारद सहित = शारदा (सरस्वती देवी) सहित
अहीसा = अहीश, शेषनाग

भावार्थ

सनकादि ऋषि, ब्रह्माजी, देवर्षि नारद, देवी सरस्वती, शेषनाग और साथ ही बड़े बड़े मुनीश्वर (भी आपके समस्त गुणों का गान नहीं कर सकते ।)

व्याख्या

यह चौपाई अगली चौपाई के साथ मिल कर पूरा अर्थ प्रकट करती है । तुलसीदासजी कहना चाहते हैं कि हे पवन कुमार ! आपकी महिमा अपार है व आपके गुण अनन्त हैं, जिनका वर्णन तो ब्रह्माजी, देवी-देवता और बड़े बड़े ऋषि मुनि भी नहीं कर सकते । सच तो यह है कि इनके वर्णन में विधाता भी विवश हैं और उनके मानसपुत्र देवर्षि नारद एवं बड़े बड़े मुनीश्वर भी । साथ ही विद्या व वाणी की देवी सरस्वती की वाणी भी असमर्थ हो जाती है । सनकादि ऋषि ब्रह्मज्ञानी हैं, फिर भी आपके गुणों की थाह नहीं पा सकते और न सहस्र मुखों वाले शेषनाग ही आपके समस्त गुणों का गान कर सकते हैं । पुराणों में सनकादि चार ऋषियों का वर्णन मिलता है । ये चारों ब्रह्माजी के मानसपुत्र हैं और अपनी इच्छा से सदा बालक रूप में ही रहते हैं । ये कौपीन धारण करते है, वैरागी हैं तथा परम ज्ञानी भी । ये हरि नाम का गायन व स्मरण करते हुए एक साथ विचरण करते हैं । इनके नाम हैं सनक, सनत्कुमार,  सनन्दन और सनातन । इन चारों को इकठ्ठे सनकादि (सनक + आदि) ऋषि कहा जाता है । ये ब्रह्मज्ञानी महान् मुनि भी आपकी अपार महिमा को पूरी तरह नहीं जानते ।

शेषनाग भी पुराणों आई हुई कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे तथा कठोर तपस्या करके शेषनाग ने उन्हें ेप्रसन्न करके यह वरदान माँगा कि भगवान् विष्णु उन्हें कभी स्वयं से दूर न करें और इसलिये उनके विराट शरीर को अपनी शैय्या बना लें व क्षीर-सागर में उन्हें ले जाकर वहीं सदा उनकी शैय्या पर शयन करें । विष्णुदेव को इस कारण शेषशायी भी कहा जाता है । शेषनाग के एक हज़ार मुख हैं तथा अपने फण पर इन्होंने पृथ्वी को धारण किया हुआ है, ऐसी कथा पुराणों में प्राप्त होती है । गोस्वामीजी कहना चाहते हैं आपके अपरिमित गुण एक हज़ार मुखों से शेषनाग भी नहीं सुना सकते । अहीसा का अर्थ है शेषनाग । अहि + ईश से बना है शब्द अहीश और उसीके बिगड़ा हुआ रूप है अहीस अथवा अहीसा । अहि शब्द का अर्थ है नाग तथा ईश कहते हैं स्वामी या राजा को । इस प्रकार अहीश का अर्थ होता है नागों के राजा — सबसे बड़े नाग ।शेषनाग का एक और नाम अनन्त भी है ।

चौपाई १३ अनुक्रमणिका चौपाइ १५

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