श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ८
Chaupai 8 Analysisप्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥ ८ ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया | ||
प्रभु चरित्र | = | रामजी का जीवन-चरित |
सुनिबे को | = | सुनने के लिये |
रसिया | = | रसिक |
राम लषन सीता मन बसिया | ||
राम लषन सीता | = | राम, लक्ष्मण, सीता |
मन बसिया | = | मन में बसने वाले, बहुत प्यारे |
भावार्थ
हे हनुमानजी ! आप रामकथा सुनने के रसिक हैं तथा सदा राम, लक्ष्मण व सीताजी को अपने मन में बसाये रहते हैं ।
व्याख्या
हनुमानजी प्रभु चरित सुनिबे को रसिया के रूप में बड़े प्रेम से जाने जाते हैं । स्वाभाविक ही भक्त का यह गुण होता है कि उसे भगवान् की कथा में अद्भुत् आनन्द मिलता है । श्रीमारुति भी अपने परम आराध्य श्रारीमचन्द्र की कथा में असीम अनुराग रखते हैं । वे चिरंजीवी हैं, किन्तु यह दीर्घ जीवन उन्हें रामकथा के बिना सुहाता नहीं है अर्थात् भाता नहीं है । लोक में यह बात आज भी प्रसिद्ध है कि जहां कहीं भी रामकथा का पाठ होता है, वहां अदृश्य रूप में रह कर श्रीमारुति कथा सुनने अवश्य आते हैं । रामकथा के जन्मजात प्रेमी हनुमानजी हाथ जोड़े, मस्तक झुकाये, भावभीने नेत्रों उसे सुनने के लिये किसी न किसी रूप में वहाँ अवश्य उपस्थित रहते हैं । आरम्भ से अन्त तक श्रीराम की कथामृत का पूरा आस्वादन वे करते हैं । यह मान्यता भी दृढ़मूल है कि रामकथा सुनने वालों में हनुमानजी सबसे पहले आते हैं तथा सबसे अन्त में जाते हैं । श्रीरामचंद्र के राज्याभिषेक के समय हनुमानजी ने राघवेन्द्र से यह वरदान ही मांग लिया था कि जब तक आपका पावन चरित सुनता रहूँ, तभी तक मेरा यह जीवन रहे । तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में बालकाण्ड के मंगलाचरण में सीताराम के अनंत गुणों को एक पुण्यमय पवित्र वन की उपमा दी है तथा कपीश्वर को उस पावन वन का विहारी अर्थात् विहार करने वाला बताया है । तात्पर्य यह है कि सीताराम की कथा को वे कभी नहीं छोड़ते । यही उनके जीवन का आधार है ।
हनुमानजी राम, लक्ष्मण व सीताजी की छवि सदा अपने मन में बसाये रहते हैं, अतएव वे ये तीनों श्रीमारुति के मनबसिया हैं । श्रीराम के राज्याभिषेक पर इन्होंने अपना वक्ष चीर कर उसमें बसी सीताराम की छवि दरबार में दिखाई थी ।
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