श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई ३

Chaupai 3 Analysis

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
महाबीर = वीरों के वीर
बिक्रम = शूरवीर
बजरंगी = वज्र जैसे अंगों वाले
कुमति निवार सुमति के संगी
कुमति = दुर्मति, दुर्बुद्धि
निवार = दूर करने वाले
सुमति = सद्बुद्धि, सुबुद्धि
संगी = साथी, सहायक

भावार्थ

हे महावीर ! आप परम पराक्रमी और वीरों के वीर महावीर हैं । आप बजरंगी हैं अर्थात् आप वज्र जैसे कठोर अंगों वाले हैं । हे बजरंगी ! आप दुर्बुद्धि को दूर करने वाले तथा सुमति के सहायक हैं । तात्पर्य यह कि आप दुष्ट बुद्धि वालों का विनाश करते हैं तथा सुबुद्धि से, धर्मबुद्धि से चलने वालों की सहायता तथा रक्षा करते हैं ।

व्याख्या

हनुमानजी को  उनके भक्त महावीर और बजरंगी  कह कर भी पुकारते हैं । बजरंगी शब्द वज्र + अंगी से बना है । वज्र शब्द का अपभ्रंश रूप है बजर् । अंगी शब्द उससे जुड़ता है तब  (बजर् + अंगी = बजरंगी) बजरंगी शब्द बनता है । इसका अर्थ है वज्र जैसे शक्तिशाली अंग हैं जिसके, वह । वे वज्रांग अथवा बजरंगी सभी आयुधों से अवध्य हैं । वरुणदेव ने उन्हें अमरत्व दिया था, यम ने अपने दण्ड से उन्हें अभय दिया व कुबेर ने गदा के आघात से । भगवान शिव ने शूल तथा पाशुपतास्त्र से और ब्रह्माजी ने ब्रह्मास्त्र से उन्हें अवध्य होने का वरदान दिया था । अस्त्र-शस्त्रों के निर्माता विश्वकर्मा ने उन्हें सभी आयुधों से अवध्य रहने का वर दिया था । इस प्रकार युद्धवीर हनुमानजी को यहां बिक्रम कहा गया, जिससे पराक्रमी होने का भाव व्यक्त होता है ।

इस प्रकार उन्हें महावीर, विक्रम व बजरंगी पुकारते हुए तुलसीदासजी कहते हैं कि आप कुमति के नाशक हैं । तामसी तथा विपरीत बुद्धि को कुमति कहते हैं । तमोगुण से ढंकी हुई तथा पाप कराने वाली यह विपरीत बुद्धि अधर्म को ही धर्म मानती है और प्राणी का सर्वनाश करती है । रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में विभीषण रावण को समझाते हुए कहते हैं — तव उर कुमति बसी विपरीता । हित अनहित मानहु रिपु प्रीता ॥ अर्थात् तुम्हारे मन में कुमति बसी है, इसलिये अनहित को अपना हित मान रहे हो व शत्रु (सीता) में प्रीति रख रहे हो । एक प्रसिद्ध कहावत है विनाश काले विपरीत बुद्धि । तुलसीदासजी हनुमानजी से कहते हैं कि आप ही दुर्मति को दूर करने वाले और सुबुद्धि के सहायक हैं । तात्पर्य यह कि दुष्टों और दुराचारियों का आप दलन करते हैं । सन्त और सत्पुरुष आपसे सहायता पाते हैं । सुबुद्धि व्यक्ति को श्रीराम में लगाती है, भक्तिभाव को दृढ़ करती है । ऐसी सात्त्विक बुद्धि ही सुमति है । सुमति से युक्त व्यक्ति सदाचारी और धर्मशील होता है और हे पवनपुत्र ! ऐसे सज्जन व्यक्ति को आपकी कृपा अवश्य मिलती है । इस तरह आप सुमति के संगी हैं ।

चौपाई २ अनुक्रमणिका चौपाइ ४

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