शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
दो शब्द
An Overviewशिवमहिम्नःस्तोत्रम् गंधर्वराज पुष्पदंत द्वारा रचित स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की अपार, अनिर्वचनीय महिमा का गान किया गया है । इस स्तोत्र की रचना के साथ एक सुन्दर कथा अनुस्यूत है । काशी में चित्ररथ नामक एक राजा हुए, जो परम नैष्ठिक शिवभक्त थे । वे प्रतिदिन शिवपूजन करते हुए अपने राजोद्यान से लाये हुए सुन्दर पुष्प भगवान इन्दुमौलि को अर्पित करते थे । एक बार गंधर्वराज पुष्पदंत, जो आकाशमार्ग से उस ओर विचरण कर रहे थे, की दृष्टि रंग-बिरंगी फूलों से शोभायमान राजोद्यान पर पड़ी और वे उद्यान की अपूर्व सौंदर्य-सुषमा देख कर मुग्ध रह गए । गन्धर्व योनि मनुष्येतर एक दिव्य योनि है । गन्धर्व स्वर्गलोक के दिव्य गायक एवं संगीतकार होते हैं, जो देवराज इंद्र की सभा में गायन-वादन करते हैं । इनके पास देवों की ही भांति अनेक दिव्य शक्तियां होती हैं । पुष्पदंत सबसे अदृश्य रहते हुए, रात्रि के समय अपने आराध्य भगवान् शिव की अर्चा लिये उस रमणीय उद्यान से पुष्प ले जाया करते थे । प्रतिदिन पुष्प-चयन के चलते पुष्पों की कमी होने लगी । राजा को पूजनार्थ पर्याप्त पुष्प लब्ध न होते थे । लेकिन उनके इस तरह लुप्त हो जाने का रहस्य किसी की भी समझ में न आया । कोई चोरी करता हुआ न देखा गया, न पाया गया । तब उनके चतुर व नीतिकुशल मंत्री ने उन्हें चोर को रंगे हाथों पकड़ लेने की युक्ति सुझाई कि उपवन के पथ पर शिव-निर्माल्य को सघनता से बिछा दिया जाये । इससे फूल ले जाने के समय पवित्र निर्माल्य का उल्लंघन हो जायेगा फलत: पुष्प ले जाने वाला दिव्य शक्ति खो देगा व पकड़ा जायेगा । अन्ततः राजोद्यान में चारों ओर पवित्र शिव-निर्माल्य को इस प्रकार बिछा दिया गया कि कहीं भी रिक्त भूमि न दिखाई दे ।
शिवनिर्माल्य का अर्थ है शिवपूजन करते समय शिवलिंग पर चढ़ाए गए बिल्वपत्र एवं पुष्पादि, जो अत्यंत पवित्र होते हैं तथा अगले दिन वहां से उठा दिए जाते हैं । इनका अनादर और उल्लंघन करने वाला पाप का भागी बनता है । उद्यान-पथ पर शिवनिर्माल्य बिखरे होने की बात से अनभिज्ञ, गंधर्वराज ने पुष्पचयन के लिये जाते हुए पथ पर बिछे बिल्वपत्रों का उल्लंघन कर दिया (अन्य स्थलों पर यह भी पढ़ने को मिलता है कि पवित्र बिल्वपत्रों पर अनजाने में उनका पैर पड़ गया) । अब अनजाने में ही सही, किन्तु यह पाप उनसे हो गया, फलतः भगवान शिव के वे रोष -भाजन बने । परिणामस्वरूप पुष्पदंत अपने महिमामय गन्धर्व-पद व गौरव से भ्रष्ट हुए और तत्काल उनकी अदृश्य रहने की दिव्य शक्ति भी जाती रही, जिससे अब वे सभी को दृष्टिगोचर हो गए । उस समय अपने अपराध का बोध होने पर संताप व पश्चाताप से अभिभूत हुए गंधर्वराज ने बड़े ही आर्त्त स्वर में भगवान शिव की अपार महिमा का गुणानुवाद गाते हुए उनका स्तवन किया । किंकरवश्य (अपने किंकर के वश में रहने वाले) भगवान शंकर भक्त की पुकार सुन कर द्रवित हो गए तथा उन्होंने गंधर्वराज को क्षमादान दिया व अपनी समस्त दिव्य शक्तियों सहित पुष्पदंत को पुनः गन्धर्व-पद की प्राप्ति हुई । गंधर्वराज पुष्पदंत द्वारा विरचित यही स्तोत्र शिवमहिम्नःस्तोत्र है । महिम्न: वस्तुतः महिमन् शब्द की षष्ठी विभक्ति का एकवचन का रूप है । अकारणकरुणावरुणालय भगवान शिव के चरणकमलों में अपनी प्रणति निवेदन करते हुए स्तुतिकार ने इस दिव्य स्तोत्र को शिवमहिम्न:स्तोत्रम् के नाम से अभिहित किया है । शिवमहिम्न:स्तोत्रम् का शाब्दिक अर्थ है ‘भगवान शिव की महिमा का स्तोत्र’ और इसका गहन अर्थ है स्तुतिगायक की दृष्टि में उसके परमाराध्य की अपरम्पार महिमा का स्तवन-गान, जिस अनिर्वचनीय दिव्यता का कोई ओर-छोर न पा कर वह इस लम्बी व दिव्य स्तुति को गाते हुए अन्त में कह उठता है कि आपके तत्व को मैं नहीं जान पाया महेश्वर ! आप जैसे हो और जिस रूप में हो, आपको नमन है । “तव तत्त्वं न जानामि किदृशोsसि महेश्वर । यादृशोsसि महादेव तादृशाय नमों नम: ।।”
शिवमहिम्नःस्तोत्रम् की अपनी महिमा भी अपार है । इसका पाठ अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है । इस स्तोत्र के विषय में यह बात प्रसिद्ध है कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने इस इस स्तोत्र के कुछ श्लोकों का पाठ किया था और तुरंत ही वे समाधि में चले गए । भगवान महेश्वर को प्रसन्न करने वाले इस स्तोत्र की महिमा अवर्णनीय है । स्तोत्र में ४३ श्लोक हैं, जिनका अपनी अल्प मति से व्याख्या करने का मेरा यह बालोचित प्रयास है । सुधी पाठकों को इससे कुछ आनंद-लाभ हो, ऐसी मेरी आकांक्षा है ।
इति श्रीशिवार्पणमस्तु ।
मूल पाठ एवं अन्वय | अनुक्रमणिका | पहला श्लोक |
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बहुत ही सुंदर और लाभकारी कार्य कर रही हैं आप आदरणीया! आपके श्रम और ज्ञान को मेरा प्रणाम 🙏
धन्यवाद । कृपा भगवान चन्द्रमौलि की है, जो मेरे सदृश अल्पज्ञ अथवा अज्ञ जन को भी यह गौरव अपने नाम करने का प्रसाद दे रहे हैं । इति शुभम् ।
शत कोटि प्रणाम। दीर्घ समय से शब्दों की व्याख्या को ज्ञात करने के लिए आतुर था। मेरे सबके परम दयालु भगवान् भोलेनाथ ने यह इच्छा आपके द्वारा पूर्ण की । नमन पूर्वक धन्यवाद ।
आपको साभार नमस्कार । मुझ वचन-दरिद्र को कृपया इतना मान न दें । भगवान बम भोलेनाथ के कृपा-कण से सिंचित है यह प्रयास …इसमें मेरा कुछ श्रेय नहीं । इति शुभम् ।
श्रृध्देय डा. किरण जी , पुनः शत शत नमन । आशा ही नहीं वरण विश्वास है कि अब तक श्लोक १६ से आगे वाले श्लोकों की व्याख्या हो गई होगी। मैं अधीर हृदय से इसकी प्रतीक्षा कर रहा हूं। कृपया इस हर्षमय पल की सूचना यथाशीघ्र दें ।कष्ट एवं धृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
आदरणीय एस.के.नाथजी,नमस्कार । यथाशीघ्र श्लोक एक-एक करके प्रकाशित कर दिये जायेंगे साथ ही सूचना भी मिल जायेगी । अभी १०-१२ दिन का समय लग जायेगा । पाठ-परायण पाठकों की जिज्ञासा न तो धृष्टता है और न हमारे लिये कष्ट ही । अपरिहार्य कारणों से प्रकाशन में विलम्ब को कृपया अन्यथा न लें । आगे की व्यवस्था क्षिप्र हो, इस पर पर हमारा ध्यान है । धन्यवाद । इति शुभम् ।
पूरी पुस्तक क्रय के लिए कोई पता हो तो कृपया बता दीजिये। आपकी लेखन और व्याख्या शैली अति सुगम और प्रशंसनीय है महोदया जी। विशेषकर भगवान शिव के स्तोत्र मंत्र इत्यादि के विषय में विस्तृत जानकारी बहुत ही सुंदर तरीके से आपने व्याख्या की है। और भी शिव से सम्बद्ध रचनाएं आप लिखे तो आपके आभारी रहेंगे महोदया जी।
बहुत बहुत धन्यवाद!
अभी पुस्तकाकार प्रकाशन शेष है । समय लग जायेगा इसमें । केवल वेब-साइट पर ही सम्प्रति यह उपलब्ध है । शिवकृपा बनी रहे बस, कार्य आजीवन चलाते रहना है । पसन्द करने के लिये धन्यवाद । इति शुभम् ।
Waiting eagerly for vyakhya beyond shloka 20 . Please consider my request & oblige. Thanks with regards .
The next श्लोक will be published in a day or two and subscribers will be informed. Regards. इति शुभम् ।
पुष्पदंत के विषय में और जानकारी मिल जाती। 🙏🏼
गन्धर्वराज पुष्पेन्द्र के विषय में कुछ और जानकारी हमें भी वांछित है । अभी तो इतनी ही सुलभ है । इति शुभम् ।
kindly do the details explanation of followings paths
1. Rudri Path
2. Hanuman chalisa with meaing of each stanza
3. Swasti vachnam
श्रीहनुमानचालीसा की शब्दार्थ सहित सभी दोहा-चौपाइयों की व्याख्या श्रीरघुनाथजी की अहैतुकी कृपा से हम शीघ्र ही प्रकाशित करने जा रहे हैं । शेष केसरी कुमार की कृपा …!!! इति शुभम् ।
सादर चरण स्पर्श मैम, कितना अच्छा हो यदि आप वाल्मीकि रामायण का अनुवाद कर दें तो… क्योंकि आज के कुछ लोग फॉलोवर्स जोड़कर यह सिद्ध करने में लगे हैं कि सीता जी ब्लाउज नहीं पहनती थीं, नीचे केवल घाघरा और ऊपर से एक दुपट्टा डाल लेती थीं… और भी बहुत भ्रांतियां फैलाने में लगे हैं जैसे उस समय सब लोग मांस खाते थे.. जब से ‘आदिपुरुष’ मूवी आई है.
मैम, वे लोग कह रहे हैं कि बालकाण्ड में चारों बहुओं के स्वागत के दौरान संस्कृत में जो ‘क्षौमवास’ का उल्लेख है, उसका अर्थ साड़ी नहीं, बल्कि रेशम का घाघरा है और एक ही लंबे से वस्त्र को साड़ी नहीं समझना चाहिए.
अयोध्याकांड में कौशल्या जी द्वारा सफेद साड़ी पहने जाने पर “शुक्लक्षौमसंवीतां” लिखा हुआ है… तो “संवीतां” का क्या अर्थ है?
सीता जी निकली तो थीं वल्कल वस्त्र पहनकर, लेकिन जब अनसूया जी ने सीता जी को वस्त्र दिए थे, और लंका में यह उल्लेख आता है कि “हनुमान जी ने देखा कि सीताजी का शरीर एक ही पीले रंग के पुराने रेशमी वस्त्र से ढका हुआ था”
अग्नि परीक्षा में लाल रंग की रेशमी साड़ी का उल्लेख है. “उनके श्रीअङ्गों पर लाल रंग की रेशमी साड़ी लहरा रही थी.” वहां “रक्ताम्बर” लिखा है.
और जब “अंगों पर” लिखा है, तो मेरे ख्याल से सम्पूर्ण अंगों की बात हो रही है, केवल नीचे के अंगों की नहीं..
मैंने पढ़ा है कि जिस प्रकार अम्बर पृथ्वी को ढक लेता है, उसी प्रकार शरीर को ढकने वाले को भी ‘अम्बर’ कहते हैं..
फिर सीता हरण के समय सीता जी अपने उत्तरीय में आभूषण बांधकर नीचे गिरा देती हैं. उसके बाद लंका में ले जाकर जब रावण उनसे अजीब बातें बोलता है, तब वे “अपने आंचल में मुंह ढककर रोने लगती हैं.”
मैम, क्या आप कुछ मदद कर सकती हैं प्लीज, ताकि मैं अपने बीच में उपस्थित लोगों को एक सार्थक उत्तर दे सकूं?
राधिकाजी, यहां केवल विषय सामग्री से संबद्ध शंकाओं का यथासंभव समाधान किया जाता है । हम न तो कोई धर्म-धुरंधर हैं, न विद्वान और न हि दार्शनिक । अपने पठित विषय से हट कर हम कुछ कह सकने में समर्थ नहीं हैं । केवल इतना भर जानते हैं कि पूर्व युगों में वस्त्र-धारण को लेकर जो पवित्र, सुचारू व सुरुचिपूर्ण दृष्टि भारतीय संस्कृति में दिखती है, वह विश्व में अन्यत्र दुर्लभ है । केवल सांस्कृतिक-बौद्धिक रूप से दरिद्र व्यक्ति ही इस गौरव पर लांछन लगा सकता है ।
प्लीज सॉरी मैम, दरअसल सोशल मीडिया पर कुछ फालतू लोगों की पोस्ट पढ़कर मेरा मन बहुत दुःखी हो गया था, इसलिए आपसे और कुछ और अच्छे लोगों से व्यर्थ के सवाल कर डाले. लेकिन अब कोई बात नहीं है मैम. अब मैं समझ गई हूँ कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं, सबकी बातों पर ध्यान नहीं देना है मुझे. जिनकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उन्हें चीजें वैसी ही दिखाई देती हैं. वही ग्रन्थ, वही शास्त्र.. लेकिन उन्हें पढ़ने वाले लोगों की प्रकृति अलग-अलग.. कोई इन्हीं शास्त्रों के आधार पर सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है, तो कोई इनमें जातिवाद, मांसाहार, नग्नता, अश्लीलता ही ढूंढता रह जाता है.
बस, इतना ही कहना चाहती हूँ कि आपकी यह साइट मेरे जैसे लोगों के लिए तपती धूप में व्याकुल हो रहे मन और शरीर के लिए बारिश की बूंदों के समान है. आप जो कर रही हैं, उसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार मैम. 🙏
॥ नम: शिवाय ॥