गंगा मैया
पीछे पीछे चल दी गंग
शिव-जटा से निकली पावन
भव-तारिणी तरंग
पीछे पीछे चल दी गंग
सगर-पुत्र जान न पाये इंद्र का छल
ऋषि आश्रम में बंधा देख यज्ञ-तुरंग
तपस्या-रत कपिल मुनि के मौन को
समझे वे राजकुँवर सब छल पाखण्ड
पीछे पीछे चल दी गंग
विनिन्दित वचन बोले मुनि से
की कठोर कपिल-तपस्या भंग
सकोप मुनिवर ने देखा उनको
हुए तुरंत वे क्रोधाग्नि में भस्म
पीछे पीछे चल दी गंग
भगीरथ ने की अमोघ तपस्या तब
प्रसन्न हो बोले ब्रह्मा वत्स वर मंग
नृप बोले सद्गति पाएं पूर्वज हमारे
प्रभु ! भू पर भेजो पापनाशिनी गंग
पीछे पीछे चल दी गंग
प्रवेग सुरसरिता का केवल
सह सकते भोले बाबा नंग
तप से नृप के तुष्ट हो शंकर
बोले हम धर लेंगे वेग प्रचंड
पीछे पीछे चल दी गंग
गंगा बोली प्रलय मचाऊं
काँप उठें सब दिग्दिगंत
पूरी पृथ्वी बहा ले जाऊं
निज तड़ित प्रवेग के संग
पीछे पीछे चल दी गंग
गर्वीली गंगा का शिव ने
खंडित किया तुरंत घमंड
जटा में बाँध लिया उन्होंने
गंगा का प्रलय प्रवाह प्रचंड
पीछे पीछे चल दी गंग
खोल दीं अपनी जटाएं शिव ने
जिनका आदि था न कोई अंत
सुरसरिता विष्णुपादाब्जसम्भूता
हुई शम्भु की जटिल-जटा में बंद
पीछे पीछे चल दी गंग
राजर्षि की विनती पर छोड़ी
हर ने गंग की एक तरंग
तब से कहलाई अलकनंदा
शिव ने खोली लट जो बंक
पीछे पीछे चल दी गंग
पितरों की सद्गति अर्थ लिए
मन में संकल्प और उमंग
भगीरथ ने तारे पूर्वज सारे
तर्पण किया गंगाजल के संग
पीछे पीछे चल दी गंग
जा पाताल में पावन कर दिया
तारा सारा महीप सगर का वंश
धवल धारा में वह राजकुमारों के
बहा ले गई जो भस्म हुए थे अंग
पीछे पीछे चल दी गंग
ज्येष्ठ मास उजियारी दशमी
मंगलवार को महापगा गंग
अवतरी मैया मकरवाहिनी
चन्द्रोज्ज्वल माँ के सब अंग
पीछे पीछे चल दी गंग
जह्नु ऋषि ने पान किया
वे पी गए सारी गंग
कहलायी वह जाह्नवी जब
प्रकटी फोड़ ऋषि की जंघ
पीछे पीछे चल दी गंग
पर्वत काट कर बहती ज्यों
कुलांचें मारता कोई कुरंग
भू पर संचरी गजगामिनी
जैसे मदमस्त चाल मत्तंग
पीछे पीछे चल दी गंग
दीपदान जप आरती कथा के
तट पर बिखरते नित नव रंग
मुंडन तर्पण अस्थि-विसर्जन
पावन हमारे संस्कारों के ढंग
पीछे पीछे चल दी गंग
तीर्थयात्री दूर दूर से आते
किये गंगास्नान-संकल्प
गंग-दशहरा मौनी अमावस
कुम्भ-मेला हैं पुण्य-प्रसंग
पीछे पीछे चल दी गंग
घाट पर देख इन्हें श्रद्धालु
मुंह बाए रह जाते हैं दंग
कनफटे जोगी औघड़ बाबा
उद्धत ढोंगी साधु नंग-धडंग
पीछे पीछे चल दी गंग
हाथ मल कर पीछे पड़ते धूर्त्त
यात्रियों को ठगते करते तंग
भीख मांगते मार्गों पर कपटी
भिखारी अकर्मण्य और अपंग
पीछे पीछे चल दी गंग
अष्टोत्तरशतनाम मैया के हैं
उनके सद्भक्तों के अवलम्ब
त्रिपथगा नलिनी भागीरथी
शिवमौलिमालती हैं अम्ब
पीछे पीछे चल दी गंग
जलमय रूप शिवप्रिया का
करता सब पापों का अंत
मोक्षदायिनी माता का है
वात्सल्यमय बड़ा उछंग
पीछे पीछे चल दी गंग
मुख में यदि गंगाजल हो
अंत समय न यम-आतंक
गति विपरीत न दे पाये
कोई पाप शाप या दंड
पीछे पीछे चल दी गंग
नतमस्तक विज्ञान हुआ
हुई खोजों की आशा-भंग
माँ के तत्व को जान न पाये
हार मान गए वैज्ञानिक फिरंग
पीछे पीछे चल दी गंग
क्या है इस नदी के जल में ऐसा
जीवाणु जो रह न सकें जीवन्त
थाह न सत्व की पा सके माँ की
गंगा में अलौकिक गुण अनंत
पीछे पीछे चल दी गंग
हमने माँ को बना दिया है
दूषित कीचड नाला पंक
कपडे धोते खाते फेंकते
मैया में अपवित्र सब गंद
पीछे पीछे चल दी गंग
देश का गौरव-वैभव गंगा
बिन गंगा के हम सब रंक
लुप्त हो जाएगी यह सरिता
करना होगा प्रदूषण को बंद
पीछे पीछे चल दी गंग
प्रदूषण-विष से इसे बचाने
फूंकना होगा जागृति-शंख
केवल नदी-मात्र नहीं है गंगा
है सात्विक ऊर्जा का मार्त्तण्ड
पीछे पीछे चल दी गंग
आगे आगे चले भगीरथ
पीछे पीछे चल दी गंग
शिव-जटा से निकली पावन
भव-तारिणी तरंग
पीछे पीछे चल दी गंग
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Thanks for sharing such a beautiful poem on Ganga. 🙂
I like खंडित किया तुरंत घमंड line from this poem.
Regards,
Chandrika Shubham
जान कर अच्छा लगा कि आपको कविता पसंद आई . धन्यवाद .
Your poem on Ma Ganga is very good. I am a devotee of Ma Ganga.
Harsh
बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि आप पतितपावनी, त्रैलोक्यवन्दिता माँ गंगा के भक्त हैं, आपको साधुवाद .आभार पोस्ट पसंद करने के लिए.