श्रीहनुमानचालीसा
दोहा २
Doha 2 Analysisबुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥ २ ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार | ||
बुद्धिहीन | = | बिना बुद्धि वाला |
तनु | = | शरीरधारी, मनुष्य |
जानिके | = | जानकर, समझ कर |
सुमिरौं | = | स्मरण करता हूं |
पवन-कुमार | = | पवनपुत्र |
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार | ||
बल | = | शक्ति, सामर्थ्य |
बुधि | = | बुद्धि |
विद्या | = | ज्ञान |
देहु | = | दीजिये |
हरहु | = | नष्ट कर दीजिये |
क्लेस | = | क्लेश, दु:ख |
बिकार | = | विकार |
भावार्थ
मैं अपने को बुद्धिहीन समझते हुए, हे पवन कुमार ! आपका स्मरण करता हूँ । आपकी महिमा को समझ सके, ऐसी बुद्धि व क्षमता मेरे पास कहां ? आप मुझे बल, बुद्धि व विद्या प्रदान करें और मेरे दु:ख व विकारों को हे प्रभो, आप कृपापूर्वक नष्ट कर दें ।
व्याख्या
श्रीहनुमान चालीसा की चौपाइयों की रचना से पहले गोस्वामी तुलसीदासजी महाबली, महाज्ञानी हनुमानजी से विनय करते हुए कहते हैं कि हे पवन कुमार ! मैं आपका बड़े भक्तिभाव से स्मरण करता हूं । आपके पावन यश को कहूं, ऐसा सामर्थ्य मुझ बुद्धिहीन में कहां ? हे पवनपुत्र ! आप मुझ निपट अनाड़ी पर कृपा करें, मुझे बल दें, बुद्धि दें व विद्या दें । हे कपिवर ! मेरे कलेस अर्थात् दु:खों को दूर कर दें और कृपापूर्वक मेरे विकारों का नाश कर दें, जिससे मेरा मन शान्त और स्थिर रहे ।
मुख्य रूप से मन के ये पाँच विकार माने गये हैं—काम, क्रोध, मोह, लोभ तथा अहंकार । मन के इन पंच-विकारों के नष्ट होने से ही अन्त:करण शुद्ध होता है और मन शान्त होता है । गोस्वामीजी कहते हैं बल बुधि विद्या देहु मोहि । बल यानि शक्ति व सामर्थ्य और बुधि का अर्थ है बुद्धि । विद्या से आत्मस्वरूप का ज्ञान होता है व अपने कर्ता होने का अभिमान नहीं रहता । साथ ही विद्यावान व्यक्ति विनयशील होता है —विद्या ददाति विनयम् । अत: वे पवनपुत्र से कहते हैं कि हे पवन कुमार ! आप मुझे बुद्धि और बल व विद्या दें तथा कृपापूर्वक मेरे क्लेश व विकारों को नष्ट कर दें प्रभो ! मैं अल्पमति मनुष्य महावीर की महिमा नित्य गाता रहूं दरस-परस का सुयोग सदा पाता रहूं ।
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