श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ३८
Chaupai 38 Analysisजो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥
जो सत बार पाठ कर कोई | ||
जो | = | यदि |
सत बार | = | सौ बार, बार-बार |
पाठ कर कोई | = | कोई भाव से पढ़े |
छूटहि बंदि महा सुख होई | ||
छूटहि | = | (तो) छूटेगा |
बंदि | = | बन्धन से |
महा सुख होई | = | (और वह) बहुत सुख पायेगा |
भावार्थ
यदि कोई भी उपासक सौ बार अर्थात् बार-बार चालीसा का पाठ करे, तो वह बन्धन से छूट जायेगा और बहुत बहुत सुखी होगा ।
व्याख्या
पुण्य करने से भाग्य खुलता है और पुण्यात्मा व्यक्ति अपने कर्म के अनुरूप शुभ फल पाता है । श्रीहनुमानचालीसा का नियमित पाठ करने से पाठकर्ता भक्त को जो शुभ फल मिलता है, उसकी ओर तुलसीदासजी ने इस चौपाई में महा सुख होई कह कर संकेत दिया है । सबसे पहले सत बार शब्द का अभिप्राय समझना होगा । इसका शाब्दिक अर्थ है सौ बार । लेकिन इससे जो भाव निकल कर आता है, वह है बार-बार, जैसे किसी गीत को बार-बार या अधिक बार सुनने के बाद हम ऐसे कहते हैं कि सौ बार इस गीत को सुन लिया है, बस अब और नहीं सुनना । और हमारा अभिप्राय होता है कि कई-कई बार इस गीत को सुना है । यह कई-कई बार, बहुत बार, वाला भाव हम एक छोटा सा मुहावरा बोल कर व्यक्त कर देते हैं, और वह मुहावरा है सौ बार । एक और उदाहरण देखा जाये — मैंने सौ बार याद दिलाया, पर काम नहीं हुआ । ऐसे अनेक उदाहरण हम प्रतिदिन देखते हैं । ठीक इसी तरह यहां तुलसीदासजी द्वारा सत बार कहना संख्यावाचक नहीं है, अपितु बार-बार की आवृति का वाचक है । अत: जो सत बार पाठ कर कोई कहने से आशय यह है कि यदि कोई बार-बार पाठ करे या नियमित रूप से पाठ करे…।
तुलसीदासजी हनुमान चालीसा के पाठ का फल बताते हैं । उनके अनुसार कोई भी भक्त हनुमान चालीसा का बार-बार पाठ करता है, या नियम से प्रतिदिन पाठ करता है तो वह बन्धन से छूट जाता है । यहां पाठ शब्द ध्यान खींचता है । इसका साधारण अर्थ पढ़ना है, लेकिन पाठ केवल पढ़ने की एक क्रिया मात्र नहीं है । इस पढ़ने के साथ जुड़ी है श्रद्धा की भावना । धार्मिक ग्रन्थ केवल पढ़े नहीं जाते, उन्हें बड़ी पवित्रता से रखा जाता है, श्रद्धा के साथ, भाव के साथ पढ़ा जाता है, तब कहीं जा कर उसे पाठ करना कहते हैं । हमारे घरों में धार्मिक पुस्तक, चाहे वह कितनी ही छोटी या पतली-सी क्यों न हो, बड़ी पवित्रता के साथ रखी व पढ़ी जाती है । इसमें निहित यही भक्ति-भावना उस पुस्तक के पढ़े जाने को पाठ बनाती है । आवश्यक नहीं कि पुस्तक से ही पाठ किया जाये । याद की हुई स्तुति को बोलना भी पाठ करना कहलाता है । इतना ही नहीं, प्रतिदिन के व्यवहार में केवल पूजा करने को भी पूजा-पाठ करना कहते हैं, अत: चालीसा का नियमित पाठ करने से हनुमानजी की नियमित उपासना करने का अर्थ भी सही है ।
अब गोस्वामीजी कहते हैं कि यदि कोई सत बार यानि नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करे तो वह बन्धन से छूट जायेगा और उसे महा सुख मिलेगा । यह बंधन भौतिक या आध्यात्मिक कोई भी हो सकता है । विवेकवान मनुष्य की दृष्टि में जन्म-मरण का चक्र भी बंधन है । चालीसा का नियम से पाठ करने वाला हनुमानजी का उपासक बन्धन से मुक्त होकर अतिशय सुख को प्राप्त करता है । चालीसा की एक-एक चौपाई में संकटमोचन की कृपा भरी है । हनुमानजी ही जीवमात्र का मिलन श्रीराम से करवाते हैं । रामजी के चरणकमल में शरण पा लेना ही वास्तव में महा सुख है । उन करुणानिधान के दर्शन सब सुखों का मूल हैं ।
तुलसीदासजी ने विनयपत्रिका में भी यही बात कही है कि हे हनुमानजी ! आप बन्धनों से छुड़ाने वाले हैं, आपका ऐसा यश वेदशास्त्र गाते हैं — बन्दिछोर बिरुदावली निगमानिगम गाई ॥
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बेहद अच्छा लगता है आपको पढ़ना. मैं रोज एक बार आपकी साइट खोलकर देख लेती हूँ कि शायद आज कुछ अपडेट हुआ होगा…. Thank U so much Ma’am
जय श्रीराम ??
धन्यवाद राधिकाजी । अनुगृहीत हूं । नमस्कार ।
अनुगृहीत तो मैं हूँ मैम, बहुत सुकून मिलता है आपको पढ़कर. बहुत से प्रश्नों का समाधान हुआ है मेरे, और अब ईश्वर से खुद को जोड़ना और उनसे प्रार्थना करना आसान हुआ है कुछ… मैम बस मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि कृपया आप अपने इस लेखन को सुरक्षित रखियेगा. यदि आप चाहें तो इसे एक पुस्तक का रूप भी दे सकती हैं… आज के समय में आपके लेखन का ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है… जैसे तुलसीदास जी ने श्रीराम पर, वैसे ही आपने भगवान् शिव पर एक सुन्दर और कल्याणकारी ग्रन्थ की रचना कर डाली है… ?
नमस्कार । कृपया प्रशंसा-बहुल शब्दों से किनारा करें । प्रशंसा केवल सर्वमंगल का विधान करने वाले परमात्मा की, न कि क्षुद्र जीव की । इति शुभम् ।