शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
श्लोक ४१
Shloka 41 Analysisतव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर ।
यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नम:॥ ४१ ॥
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर । | ||
तव | = | आपके |
तत्त्वम् | = | तत्व को |
न | = | नहीं |
जानामि | = | (मैं) जानता हूं |
कीदृशोऽसि | → | कीदृश: +असि |
कीदृश: | = | (कि) किस तरह के, कैसे |
असि | = | आप हो ? |
महेश्वर | = | हे महेश्वर ! |
यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नम: | ||
यादृशोऽसि | → | यादृश: + असि |
यादृश: | = | जिस तरह के, जैसे (भी) |
असि | = | आप हो |
महादेव | = | हे महादेव ! |
तादृशाय | = | उसी तरह के, वैसे (ही) |
नमो नम: | = | (आपको मेरा) बार-बार प्रणाम है |
अन्वय
भावार्थ
हे महेश्वर ! मैं आपके तत्व (रहस्य) को नहीं जानता हूं कि आप कैसे हो । परन्तु हे महादेव ! आप जिस किसी तरह के हो, जैसे हो, वैसे के वैसे लगन आपको मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ ।
व्याख्या
शिवमहिम्न:स्तोत्रम् में कवि ने परात्पर भगवान् शिव की अनिर्वचनीय महिमा का गुणानुवाद किया है । महादेव के सगुण, निर्गुण रूप के वर्णन के साथ ही उन्हें उनसे परे भी चित्रित किया है । यहां प्रणव के रूप में भी महादेव के दर्शन होते हैं । कवि ने उन्हें नेदिष्ठ से भी निकटतर तथा दविष्ठ से भी दूरतर बताया है तथा यह प्रतिपादित किया है कि जगत् के सभी रूपों के मूल में वे परात्पर ब्रह्म ही स्थित हैं ।
प्रस्तुत श्लोक में गन्धर्वराज परम भक्ति से अपने आराध्य के चरणों में यह निवेदन करते हैं कि मैं आपके तत्व को नहीं जानता हूँ । तात्पर्य यह है कि पर से भी पर ब्रह्म के तत्व को कोई कैसे भला जान सकता है । हे महेश्वर ! आप कैसे हैं, कैसे लगते हैं, कैसे दिखते व प्रतीत होते हैं, यह मैं तनिक भी नहीं जानता । बस जानता हूँ तो केवल इतना ही जानता हूँ कि आप जैसे भी हो, जैसे भी लगते या दिखते हो, वैसे के वैसे ही मेरे हो । अतएव हे महादेव ! आपको मैं आपके उसी रूप में बार-बार प्रणाम निवेदन करता हूँ । इससे अभिप्रेत है कि हे प्रभो ! आप जिस किसी छवि से ही मुझ अज्ञानी के मन में बसे हैं, उसी रूप में मेरा प्रणाम कृपापूर्वक स्वीकार करके मुझे कृतकृत्य करें ।
श्लोक ४० | अनुक्रमणिका | श्लोक ४२ |
कुकृत्य का मतलब गलत काम करना. यहापर कृतकृत्य यह शब्द होना चाहिए.
इस ओर ध्यान खींचने के लिये आपका धन्यवाद ।