श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई १३
Chaupai 13 Analysisसहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ १३ ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं | ||
सहस बदन | = | हजार मुख वाले, शेषनाग |
तुम्हरो | = | आपका |
जस | = | यश |
गावैं | = | गाते हैं |
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं | ||
अस | = | ऐसा |
कहि | = | कह कर |
श्रीपति | = | श्रीराम |
कंठ लगावैं | = | गले लगाते हैं |
भावार्थ
हजार मुख वाले शेषनाग अपने हजारों मुखों से तुम्हारा यश गायें अर्थात् तुम्हारा गुणगान करें, ऐसा कह कर लक्ष्मीपति आपको गले से लगा लेते हैं ।
व्याख्या
प्रभु श्रीराम हनुमानजी द्वारा की गई सेवा से उन पर बहुत प्रसन्न थे । जब पवनपुत्र सीताजी का सन्देश रामजीको सुनाते हैं तथा लंका के समाचार भी प्रभु से कह सुनाते हैं, तब रामचन्द्रजी प्रेम की अतिशयता से उन्हें अपने गले से लगा लेते हैं । श्रीपति शब्द से प्रकट किया है कि रामचन्द्रजी श्रीविष्णु के अवतार हैं । श्री शब्द लक्ष्मीजी का वाचक है और सीताजी के लिये भी इस शब्द का प्रयोग होता है ।
भगवान विष्णु नर की भाँति नाट्यलीला करते हुए रामावतार में वे रावण, कुम्भकर्ण खर, दूषण, त्रिशिरा, मारीच आदि दुर्दांत राक्षसों का संहार करके अपने अवतार के उद्देश्य को पूरा करते हैं । रामचरितमानस के किष्किन्धा काण्ड में श्रीराम व हनुमानजी की भेंट का वर्णन आता है । प्रभु से मिलने के बाद अन्त तक वे छाया की तरह उनके साथ बने रहते हैं व प्रभु के कार्यों को पूरी निष्ठा से संपन्न करते हैं । ऐसे में रघुवीरजी प्रेम के अतिरेक में उन्हें गले लगा लेते हैं और आशीष देते हैं कि हज़ार-हज़ार मुखों से शेषनाग तुम्हारा यशगान करें । सहस बदन अपभ्रंश रूप है सहस्रवदन का, जो शेषनाग का एक नाम है । सहस्र शब्द का अपभ्रंश रूप है सहस, जिसका अर्थ हजार होता है और बदन बिगड़ा हुआ रूप है संस्कृत शब्द वदन का और इसका अर्थ है मुख ।
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