शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
श्लोक ४२
Shloka 42 Analysisएककालं द्विकालं वा त्रिकालं य: पठेन्नर: ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोके महीयते ॥ ४२ ॥
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं य: पठेन्नर: | ||
एककालम् | = | एक बार |
द्विकालम् | = | दो बार |
वा | = | अथवा |
त्रिकालम् | = | तीन बार |
य: | = | जो (कोई) |
पठेन्नर: | → | पठेत् + नर: |
पठेत् | = | (इसे) पढ़ता है |
नर: | = | मनुष्य |
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोके महीयते | ||
सर्वपापविनिर्मुक्त: | = | सब पापों से मुक्त होकर वह (जन) |
शिवलोके | = | शिवलोक में |
महीयते | = | बसता है |
अन्वय
य: नर: एककालम् द्विकालम् वा त्रिकालम् पठेत् (स:) सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोके महीयते ।
भावार्थ
जो कोई भी जन इसे एक बार, दो बार अथवा तीन बार पढ़ता है, वह जन सब पापों से मुक्त होकर शिवलोक में बस जाता है ।
व्याख्या
शिवमहिम्न:स्तोत्रम् के प्रस्तुत श्लोक में स्तोत्रकार पुष्पदन्त इस स्तोत्र की महिमा को रेखांकित करते हुए यह बताते हैं कि इसका पाठ जो कोई भी नर (मनुष्य) यदि दिन में एक बार करे, दो बार करें या तीनों ही समय करे, तो वह अपने किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है । उसकी मलिनता जाती रहती है । और वह शिवजी के धाम श्रीकैलाश अथवा शिवलोक का अधिकारी बन जाता है तथा वहीं वास करता है ।
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