सोपान श्रेणी
मेरे मन प्राण
सरसाने और सहलाने
स्वयं को
चल देते हैं
सहज सामने
प्रकृति की क्रोड़ में
और मुझे
दुलराने और बहलाने को
फूलों पर ओस की बूंदों को
छिटका देती है
यह प्रकृति
पुष्पराग-प्रभामयी
मेरी
निशि-वासर उठती पीड़ा की
अबूझ पहेली सुलझाने को ।
सहसा
पुलक की सरसों
फूल उठती है
लोल लोचन की
धुंध-ढंकी क्यारियों में
पर साथ ही इसके अनायास
स्मरण बहुत कुछ
हो आता है
तुरत जिसे भुलाने को
वार्धक्य की मारी देह मेरी
उतरने लगती है
अवचेतन के झिलमिल सोपानों से
चैतन्य की ओर
अंजुली भर
निज सुध की सुधा पाने को !
सरसाने और सहलाने
स्वयं को
चल देते हैं
सहज सामने
प्रकृति की क्रोड़ में
और मुझे
दुलराने और बहलाने को
फूलों पर ओस की बूंदों को
छिटका देती है
यह प्रकृति
पुष्पराग-प्रभामयी
मेरी
निशि-वासर उठती पीड़ा की
अबूझ पहेली सुलझाने को ।
सहसा
पुलक की सरसों
फूल उठती है
लोल लोचन की
धुंध-ढंकी क्यारियों में
पर साथ ही इसके अनायास
स्मरण बहुत कुछ
हो आता है
तुरत जिसे भुलाने को
वार्धक्य की मारी देह मेरी
उतरने लगती है
अवचेतन के झिलमिल सोपानों से
चैतन्य की ओर
अंजुली भर
निज सुध की सुधा पाने को !
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