उल्का
उल्काओं का नियमित नर्त्तन अंतरिक्ष की रंगशाला में
भूपथ पर विखण्डित होता है विनाश की महाज्वाला में
सर्पिल भीम जटाओं का जंगल गह्वर कहीं गरजता है
तीसरे नेत्र की अंगार-अंगुली से मुण्डमाली बरजता है
विस्फोट पृथ्वी पर है तो भू पर ही है प्राण-भण्डार
जहाँ उपल हैं टूटते वहीँ पर उपलब्ध भी हैं उपचार
हिमरेखा कैलाश की है परिपूरित प्रचुर वरदानों से
मानस के राजहंस गाते हैं गान उन्मुक्त उड़ानों से ।
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