श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई १७

Chaupai 17 Analysis

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भये सब जग जाना ॥ १७ ॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना
तुम्हरो = आपका
मन्त्र = परामर्श, कथन
बिभीषन माना = विभीषण ने माना
लंकेस्वर भये सब जग जाना
लंकेस्वर = लंका के राजा
भये = बन गये (वे)
सब जग जाना = पूरी दुनिया ने जान लिया

भावार्थ

आपका परामर्श (सलाह) विभीषण ने माना और इसका परिणाम यह हुआ कि विभीषण लंका के राजा बन गये ।

व्याख्या

सीताजी की खोज में लंका गये हुए हनुमानजी की भेंट विभीषण से हुई व उन्होंने पाया कि विभीषण भी रामभक्त हैं । दोनों बहुत कम समय के लिये मिल पाये किन्तु हनुमानजी ने विभीषण की विवश दशा को जाना और विभीषण के यह कहने पर कि मैं तो राक्षसकुल का हूं और तामसी प्राणी हूं मुझ पर रामजी कब कृपा करेंगे तब हनुमानजी ने उन्हें विश्वास दिलाया कि रामजी अपने भक्त को सदा प्रेम से अपनाते है । प्रभु श्रीराम की यह नीति है कि वे अपने भक्त से, सेवक से बहुत प्रीति रखते हैं । उन्होंने यह भी कहा कि मैं एक तुचछ वानर हूं, जिसमें चंचलता ही चंचलता भरी हुई है । लेकिन मुझ हीन व अधम प्राणी को कृपापूर्वक उन्होंने अपनाया है । साथ ही हनुमानजी ने विभीषण को श्रीराम-सुग्रीव की मैत्री व सहयोग का सारा वृत्तान्त (बात) भी कह सुनाया । विभीषण ने उनकी मंत्रणा (सलाह) को माना । परिणामस्वरूप विभीषण के मन में पहले से ही बोया हुआ रामभक्ति का बीज पवनपुत्र के आश्वासन और विश्वास का विमल जल पाकर अंकुरित व विकसित हुआ । उनके द्वारा सीताजी को रघुनाथजी को लौटाने के विनय करने पर क्रुद्ध रावण न केवल उन्हें फटकारता है अपितु लात से प्रहार कर उनका भीषण अपमान करता है । फलत: लंका छोड़ कर को वे रघुरीवजी के पास गये व उनकी सुखद ग्रहण की व प्रभु के कृपापात्र बने । रावण-वध के बाद लंका का राजसिंहासन प्रभु श्रीराम की कृपा से विभीषण ने पाया । इस तरह उनके लंकेस्वर भये की कथा पूरा जग जानता है ।

चौपाई १६ अनुक्रमणिका चौपाइ १८

Separator-fancy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *