श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई २०

Chaupai 20 Analysis

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ २० ॥

दुर्गम काज जगत के जेते
दुर्गम = कठिन से कठिन
काज = कार्य
जगत के जेते = जगत के जितने (भी हैं)
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
सुगम = सरल (हो जाते हैं)
अनुग्रह = कृपा (से)
तुम्हरे तेते = वे वे आपकी

भावार्थ

इस जगत् में जितने भी कठिन से कठिन कार्य हैं, जिनका किया जाना असंभव है, वे सभी आपकी कृपा से सरल व संभव हो जाते हैं ।

व्याख्या

तुलसीदासजी का कहना है कि मनुष्य के कठिन से कठिन व असंभव लगने वाले कार्य कपीश्वर की कृपा से सरल व संभव हो जाते हैं । दुर्गम का अर्थ है जिस मार्ग से गमन (जाना) न हो सके, जैसे पहाड़ की सीधी चोटी या कंटीली झाड़ियों वाला घना जंगल आदि । तुलसीदासजी ने इस चौपाई में दुर्गम शब्द का प्रयोग उन कार्यों के लिये किया है, जिन्हें पूरा करना कठिन से भी कठिन हो । वे पवनपुत्र से बड़े भाव से कहते हैं कि संसार में जितने भी दुर्गम काज हैं यानि कठिन से कठिन व कष्टदायी कार्य हैं, वे आपकी कृपा से सुगम हो जाते हैं । सुगम का अर्थ है सरल और सहज जिसे करने में अधिक कष्ट न हो । कुछ इस तरह की बात तुलसीदासजी ने दोहावली में भी कही है—

धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारु ।
अगम सुगम सब काजु करु करतल सिद्धि बिचारु ॥
(दोहावली २२९-३०)

इसका अर्थ है कि धीर, वीर श्रीरघुवीर के प्यारे पवनकुमार का स्मरण करके चाहे दुर्गम हो या सुगम, कोई भी काम करो, यह निश्चित है कि उस कार्य की सफलता तुम्हारी हथेली पर रखी है यानि वह कार्य सिद्ध होगा ही । हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी ऐसी कठिन परिस्थिति आती है, जिससे पार होना असंभव हो उठता है । सीता मैया की खोज करते समय सागर तट पर वानरदल के साथ खड़े हनुमानजी ने कब सोचा था कि वे सागर लांघ कर लंका पहुंच जायेंगे, जहां जाने की राह दुर्गम थी । किंतु रामकृपा से यह संभव हुआ और वह भी बड़े सहज रूप से । ठीक इसी तरह मनुष्य के भी कठिन व असंभव लगने वाले कार्य रामदुलारे की कृपा से सरल व संभव हो जाते हैं । वे असाध्य कार्यों को साध्य कर देते हैं । वे  सनातन चिरंजीवी आज भी हमारा मार्गदर्शन करने के लिये इस लोक में निवास कर रहे हैं ।

चौपाई १९ अनुक्रमणिका चौपाइ २१

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