श्रीहनुमानचालीसा

दोहा १

Doha 1 Analysis

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुबर विमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ १ ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारि
श्रीगुरु = श्रीगुरुजी (के)
चरन = चरण
सरोज = कमल (की)
रज = धूल (से)
निज = अपने
मनु = मन
मुकुर = दर्पण, आइना
सुधारि = स्वच्छ (करके)
बरनउं रघुबर विमल जसु जो दायकु फल चारि
बरनउं = वर्णन करता हूं
रघुबर = श्रीराम का
विमल = पावन, निर्मल
जसु = यश, कीर्ति
जो दायकु = जो दायक है, देने वाला है
फल चारि = चारों फल, चारों पुरुषार्थ

भावार्थ

श्रीगुरुजी के चरण-कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ करके, श्रीरामचन्द्रजी के पावन यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फलों को देने वाला है अर्थात् चारों पुरुषार्थों का देने वाला है ।

व्याख्या

श्रीहनुमानचालीसा के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने चालीस पंक्तियों में बड़ी ही सरल अवधि भाषा में बजरंगबली की भक्तिभाव से स्तुति की है, जिसका शुभ आरम्भ वे अपने श्रीगुरु के चरण-कमलों में नमन करके करते हैं । वे कहते हैं कि श्रीगुरुजी के चरण-कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ करके श्रीरामजी के गुणों का गान करता हूँ । शास्त्रों में गुरु को शिवरूप कहा गया है । जैसे चिता की अपवित्र राख शिवजी के तन में लगने से पवित्र भस्म बन जाती है, वैसे ही शिवरूप गुरु के चरण से लग कर धूल भी पवित्र हो जाती है । मन रूपी दर्पण पर लगी हुई मैल वास्तव में इसी चरन सरोज रज से छूटती है और मन का मैला दर्पण स्वच्छ हो पाता है । मन का दर्पण स्वच्छ न होगा तो उसमें श्रीराम का रूप कैसे दिखेगा ? संसार के विषय मन में क्लेश और विकार उपजाते हैं तथा मन को मैला करते रहते हैं । गुरुचरणों की रज का आश्रय लेकर कर्म करने से मनुष्य के मन में कार्य के कर्ता होने का अभिमान नहीं रहता, क्योंकि उसे पता रहता है कि गुरुकृपा से सब हो रहा है । इससे अभिमान रूपी मल छूट जाता है ।

दोहे की दूसरी पंक्ति में गोस्वामीजी कहते हैं कि श्रीरघुनाथजी के पावन चरित का मैं अब वर्णन करता हूं । हनुमान चालीसा में हनुमानजी के चरित का गुणगान है, किन्तु तुलसीदासजी आरम्भ करते हैं रघुबर बिमल जसु से । इसके पीछे रहस्य यह है कि हनुमानजी को बुलाना हो अथवा उनसे कुछ निवेदन करना हो तो श्रीराम का नाम ले लेने से वे तुरंत आ जाते हैं । अपना गुणगान सुनने में उनकी कोई रुचि नहीं, वे तो श्रीरामचरित सुनने के प्रेमी हैं राम चरित सुनिबे को रसिया । प्रभु श्रीराम के स्मरण से, रामकथा के गायन-कीर्तन से हनुमानजी की प्रसन्नता और कृपा प्राप्त होती है । रामजी को याद किये बिना पवनपुत्र को पुकारना सार्थक नहीं होता । इसी कारण से हनुमानजी के गुणों का गायन करने से पहले गोस्वामी तुलसीदासजी रामचंद्रजी के पावन यश के वर्णन की बात करते हैं । वे कहते हैं कि रघुवीरजी का सुयश अति पावन है और वह चार फलों का देने वाला है । ये चारों फल वास्तव में चार पुरुषार्थ हैं, जिन्हें भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व दिया गया है और वे हैं — धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । ये चारों फल श्रीराम की यशकथा को सुनने व कहने से सहज ही मिल जाते हैं ।

इस प्रकार तुलसीदासजी पहले श्रीगुरु के चरण-कमलों में नमन करके तथा फिर अपने इष्टदेव प्रभु श्रीराम के पावन सुयश-गान से हनुमानचालीसा का शुभारम्भ करते हैं ।

मूलपाठ अनुक्रमणिका दोहा २

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8 comments

  1. सुनील नारायण उपाध्याय says:

    अति उत्तम व्याख्या साधुवाद
    जय बजरंग बली की 🙏🙏🙏

  2. सुनील नारायण उपाध्याय says:

    अति उत्तम व्याख्या
    जय श्रीराम

  3. SURENDER KUMAR says:

    आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय व पवित्र है। प्रत्येक शब्द के अर्थ क्लियर होने पर अच्छी तरह समझ आ जाता है। आपके प्रयास को साधुवाद। कृपया ‘ रामरक्षास्तोत्र’ की व्याख्या भी सभी शब्दार्थ सहित प्रकाशित करें ताकि स्तोत्र अच्छी तरह समझ आ जाते। पुनः आपका धन्यवाद

    • Kiran Bhatia says:

      जय श्रीराम । ‘रामरक्षास्तोत्र’ पर भी व्याख्या श्रीरामकृपा से कुछ समय में प्रकाशित कर दी जायेगी । इति शुभम् ।

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