शिवताण्डवस्तोत्रम्

उपक्रम : दो शब्द

Shiva Tandav Stotram – An Introduction


शिवताण्डवस्तोत्रम् की रचना दशग्रीव रावण ने की है । इसकी व्याख्या से पूर्व स्तोत्रकार व स्तोत्र की पृष्ठभूमि पर प्रकाशक्षेपण करना अपेक्षणीय प्रतीत होता है । रक्ष जाति अर्थात् राक्षसों का पराक्रमी मुखिया, बलवीर्यसाहससंपन्न, लंकाधिपति रावण ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि पुलस्त्य का पौत्र (पोता) तथा दैत्य सुमाली का दौहित्र (नाती) था । विश्रवा मुनि तथा कैकेसी का पुत्र होने से वह पितृकुल से ब्राह्मण व मातृकुल से दैत्य था ।रावण अपने पितामह के नाम से पौलस्त्य एवं पिता के नाम से वैश्रवण भी कहलाया । धनाधिपति कुबेर को भी वैश्रवण कहते हैं । यह रावण के सौतेला बड़े भाई हैं और इनकी माता का नाम है इडाविडा । रावण का पालन-पोषण उसके पिता विश्रवा मुनि के आश्रम में हुआ ओर वहीं उनके तत्वावधान में उसकी शिक्षा-दीक्षा संपन्न हुई । बाल्यकाल से ही उसने वेदाध्ययन किया । वह श्रुतिधर, शास्त्रों का ज्ञाता, राजनीति का वेत्ता व प्रकांड पंडित था । दानव-शिल्पी मय की सदाचारपरायणा पुत्री मंदोदरी से उसका विवाह हुआ था ।

धनाधिपति यक्षराज कुबेर पहले लंका का राजा थे, किंतु महाबलशाली रावण ने उन्हें वहाँ से भगा दिया और लंका को अपने आधिपत्य में ले लिया, उसने कुबेर से उनका पुष्पक विमान भी छीन लिया । कुबेर को जीत कर विजयमद में मतवाला हो कर वह आकाशमार्ग से जा रहा था, तब मार्ग में कैलाश पर्वत आने पर विमान रुक गया । विमान की बाधित गति देख कर वह क्रुद्ध हुआ और कैलाश पर्वत को उठाने का उसने प्रयत्न किया । कैलाशपति महादेव ने तब अपने अंगुष्ठ (अंगूठे) से उसे दबा दिया । पर्वत के नीचे दब कर उसके हाथ कुचले गये । रावण छटपटाता हुआ पीड़ा से चीत्कार उठा । कथा इस प्रकार है कि कई सहस्र वर्षों तक वह दबे हुए और आहत हुए अपने हाथों से वहां पर पड़ा हुआ पश्चाताप करता रहा तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के हेतु वह कातर हृदय से पुकार उठा । दैन्य भाव से उनकी स्तुति की । वही स्तुति शिवताण्डवस्तोत्रम् है । अन्ततः करुणा से द्रवित हो कर भगवान भोलेनाथ ने रावण पर कृपा की, उसके हाथ मुक्त हुए तथा पुनः पूर्ववत् स्वस्थ भी हो गये ।

Mahadeva_14064शिवताणडवस्तोत्रम्  में रावण ने ताण्डव करते हुए भगवान शिव की अपार महिमा का गान किया है । वह उनसे अपनी रक्षा की अभ्यर्थना करता है । वह चाहता है कि अपने उन अगोचर-अलक्ष्य स्वामी में वह सदा सदा अनुरक्त रहे । साथ ही उनके साकार-सगुण रूप में भी उसका भक्त हृदय आसक्त है । शिव के स्वरूप में परिलक्षित होनेवाले विरोधाभासी और विस्मयकारी तत्वों के सम्मिश्रण एवं संयोजन से वह अभिभूत है ।

शिवताण्डवस्तोत्रम् के  आरम्भ में रावण ने अपने आराध्य कल्याणकारी शिव से अपनी व अपने बंधु-बांधवों की हित-रक्षा की प्रार्थना की है । शिव जो तेजोमय हैं, ओजमय हैं, जिन्होंने अपनी घनी जटा से निकलती, छलछल बहती, जगपावनी गंगानदी के धारा-धौत स्थल पर, डमरू का महाघोष करते हए प्रचण्ड ताण्डव किया । आगे चलकर रावण का भक्त हृदय शिव के सौम्य एवम् रौद्र रूप का अपने शब्द-शीकर से अभिषेक करता है । रौद्र रूप में उनके ललाट रूपी यज्ञकुंड से लपलपाती जिह्वा (जीभ) वाली भयंकर ज्वाला और अग्नि स्फुलिंग निकल कर दुर्धर्ष कन्दर्प के दर्प को चूर चूर करते हुए उसे भस्मीभूत कर देते हैं और सौम्य रूप से चकोर-प्रीतिभाजन अर्थात् चँद्र की सुधावर्षिणी शीतल किरणें उनके शीश को शोभित करती हैं । शीश जटाल है और जटा जान्हवी-जलार्द्र है । सर्वत्र सौम्यता परिव्याप्त है ।अब आगे स्तुतिकार जटा को प्रभा-पुंज का रूप बताता है, क्योंकि उसी जटा से लिपटे मणिधर फणिधर दशों दिशाओं को पिंगल प्रभा से प्रकाशाच्छन्न करते हैं । शिव के कल्माष कंठ पर रावण को कभी नीलकमल की कांति भासती है तो कभी अमावस्या की काली रात्रि का अंधियारा । कैसी मनोहर मूरत है महादेव की ! कंठ पर अंधियारा, शीश पर उजियारा और जटा से हहरा कर बहती सुरसरि की धारा !

रावण स्तुतिगान करते हुए कहते हैं कि शिव दिक्वसन (दिगम्बर) हैं, कपाली हैं लेकिन अक्षय लक्ष्मी एवं अपार शक्ति की याचना भी उन्हीं से की जाती है और वह फलीभूत भी होती है । उनकी पादार्चना करने पुरन्दर सहित सभी देवता नित्य पंक्तिबद्ध होकर उपस्थित रहते हैं, क्योंकि महादेव देवशत्रुओं के व दर्प के हन्ता हैं, मदनजित् हैं । वे मोद मनाते हुए भी मोद के इंद्रियजन्य सुख से अतीत हैं । नगेशनंदिनी की विलासलीला के प्रसन्न सहचर वे उनके वक्ष-कक्ष की श्रृंगारकला में निष्णात हो कर भी सर्वथा निष्काम हैं । ऐसे भगवान त्रिनयन पर मुग्ध है उनका अनन्य भक्त रक्षेन्द्र रावण । महादेव समस्त लोकहितकारी कलाओं के उत्स ( स्रोत) हैं । वे कला को सर्वमांगल्य से संलग्न करते हैं अर्थात् जोड़ते हैं, इसीलिये कला रूपी कदम्ब-कोंपलों का मकरन्द -पान करते भ्रमर की भाँति वे विविध कलाओं के माधुर्य का आनंदपूर्वक आस्वादन करते हैं ।

ताण्डव-नृत्य करते हुए अपने सर्वांगसुंदर आराध्य पर रावण पूरी तरह अनुरक्त है । मृदंग के मंगलरव के बीच उन्मुक्त नर्तन में तल्लीन शिव अत्यन्त प्रसन्न एवं प्रफुल्लित दृष्टिगोचर होते हैं । रावण को प्रतीत होता है जैसे पार्वती के केशों से झरते फूलों के परागकणों की मधुगंध में सुरभि-स्नात हो कर वे उन्मत्त हो उठे हों । इन महानर्तक का मुद्रालाघव और अंग-संचालन देखते ही बनता है । ताल के निश्चित क्रम के अनुसार पग, भुजा, कटि, ग्रीवा के विलोल-हिलोल गतिमान एवं दृश्यमान होते हैं तथा संचार होता है एक सत्वर सक्रियता का ! एक विद्युत छू जाती है कण-कण को, एक त्वरा दौड़ जाती है अणु-अणु में । प्रचण्ड ताण्डव करते शिव की जटा में कुंडलाकार घूमता भुजंग अपने श्वास से भालाग्नि को भीषणतर करता हुआ फुफकार कर उठता है और तभी रावण भगवान शिव की जयजयकार कर उठता है । उसके मन में सदाशिव के लिये स्नेह की, कुलांचे मारती हुई सरिता उमड़ पड़ती है और तब तिरने लगती है उसके तट पर एक साधक की अभिलाषा । वर्षों से उसने मन में संजोयी हुई है यह साध ….कि कभी मैं भी देवापगा गंगा के कछार में, किसी एकान्त बनस्थली में पर्ण-कुटीर बना कर रहूंगा । एवं सब छल-कपट माया छोड़ दूंगा और भाल पर त्रिपुण्ड्र तिलक लगा कर, अपने मस्तक पर करांजलि धरे हुए भगवान शिव के मंत्रजाप के सुविमल सुख में स्नान करूंगा । वह भाव-विह्वल हो कर सोचता है कि क्या ऐसा शुभ दिन उसके जीवन में आयेगा, यदि आयेगा तो न जाने कब आयेगा । कब वह सब के प्रति समदृष्टि रख कर इस सुख का भाजन बनेगा । यहाँ सुख से तात्पर्य परमानन्द से है तथा इस सुख के प्रसार की कामना अन्य श्लोकों में दृष्टिगत होती है । गंगातट के निकट जीवनयापन करने की साध के पीछे वस्तुत: गंगाधर के सान्निध्य में रहने की आतुरता है । परम प्रकाशपुंज के पास कैलाश में वास करने की विह्वलता है, जहां कोई पाप-ताप नहीं, कोई दु:ख, तृष्णा, वासना नहीं, है तो केवल सुख ही सुख शिवाराधन करने का । वहाँ सभी कुछ ‘सम ‘अवस्था में है कुछ भी विषम नहीं । जो कुछ भी विषम और विगलित है वह उस ‘चित् शक्ति’, उस तेजपुंज की थिरकती किरणों में तिरोहित हो जाता है, पुन: उस तेजोराशि की नवकिरण बनने के लिये । अपने एक पग से सृजन और दूसरे पग से संहार करने वाले इन महानर्तक के ताण्डव नृत्य से नवजीवन का अंकुर फूटता है और नवआह्लाद का संचरण-वितरण होता है । स्तोत्रकार चाहता है कि भगवान भूतभावन का अद्भुत विनोद-प्रसाद उसे सदैव मिलता रहे ।

शिवताण्डवस्तोत्रम्‘ के श्लोक अपने आप में गूढार्थ लिये हुए हैं । इन्हें मनोगत किये बिना इस स्तोत्र का आनंद पूर्णत: नहीं पाया जा सकता । यद्यपि इसका अंशत: आनंद भी कुछ अल्प नहीं है । इस उत्कृष्ट रचना के भाव इतने सशक्त हैं कि ताण्डव करते हुए शिव की काल्पनिक छवि नेत्रों के सम्मुख सप्राण हो उठती है । इसका शब्द-चयन अत्यंत मनोहारी एवं भाषा संगीतमय तथा ध्वन्यात्मक है व नाद-सौंदर्य उत्कृष्ट है ।

रावण देह से दैत्य था किंतु मन से वह परम शिव-भक्त था, महाज्ञानी और प्रकांड पंडित था । मैंने श्रीरावण रचित स्तोत्र की व्याख्या करने का लघु प्रयास अपनी क्षुद्र मति से किया है । इससे पहले काव्यानुवाद प्रस्तुत करने का जैसै-तैसे साहस किया । अब आगे श्रीशिवकृपा से कठिन शब्दों के अर्थ तथा संधि-विच्छेद के साथ श्लोक प्रति श्लोक विशद व्याख्या करने का उपक्रम चल रहा है ।

इति श्रीशिवार्पणमस्तु ।

34 comments

  1. vinod says:

    This is awesome description of shiv tandav strotra and mahishasur mardini strotra.
    Thank you very much.
    Would request you to provide more of this kind of detailed explanation of other
    Shiva hymms like rudrarashatam, mahamrityunja etc.

  2. Dr.Ganesh Barve says:

    Thank you very much
    Aap le likhan me gajab ka madhurya hai Jo saral sundar translation aap ne kiya hai , bhasha aur shabdo ko achuk jod ke aapne ek bahot accha kaarya kiya hai. Hrudayse aapko dhanyawad. Aur aage ke liye dhero shubh kamnaye. Om Namah Shivay!!

  3. Kiran Bhatia says:

    ॐ नमः शिवाय । बहुत संतोष मिलता है जब पाठकगण पढ़कर पसंद करते हैं । आपकी सराहना के लिए आपकी कृतज्ञ हूँ । आशा करती हूँ,आपका अमूल्य सहयोग आगे भी इसी भांति मिलता रहेगा । धन्यवाद ।

    • shekhar says:

      मेरा सहयोग देने का तो पता नहीं पर
      आशा करता हूँ की आप इसी तरह मेरा सहयोग देते रहेगो |
      मुझे इसी चीज़ की तलाश थी।

      आपका कार्य अत्यंत सुन्दर है।
      जय शंकर की
      🙂

      • JAYESHKUMAR BHARWAD says:

        ???ओम नमः शिवाय ???
        महाशय मैं भी यही खोज में आप सभी के बीच आ पहुंचा हुं। मुझे ह्रदय से आनंद की अनुभूति हो रही है और मुझे लगता है कि मेरे लिए यह एक सही ठिकाना है।
        मैं गिरिजापति महादेव और किरण जी तथा आप सभी के प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
        ???ओम नमः शिवाय ???

    • shekhar says:

      मेरा सहयोग देने का तो पता नहीं पर
      आशा करता हूँ की आप इसी तरह मुझे सहयोग देते रहेगो |
      मुझे इसी चीज़ की तलाश थी।

      आपका कार्य अत्यंत सुन्दर है।

      अगर आप कभी भी समय निकाल कर शिव महिम्न का भी इसी तरह complete explaination with each and every thing दे सके तो मज़ा आ जायेगा।
      u can take ur time. no hurry. but sab kuch रावण तांडव स्तोत्र की तरह होना चाहिए। :):)
      जय शंकर की
      🙂

      • Kiran Bhatia says:

        आपका बहुत बहुत धन्यवाद । भगवान आशुतोष की असीम अनुकम्पा से जो आपने लिखा है वह भी संभव जाएगा । अभी उन्हीं की महती कृपा से `महामृत्युञ्जय` मन्त्र पर कार्य चल रहा है, पूर्ण होने पर शीघ्र ही प्रकाशित कर दिया जायेगा । तदुपरांत `शिवमहिम्नस्तोत्र` पर कार्य करने का आपका सुझाव प्रेरणाप्रद व उत्साहप्रद है । आशा है, आप इसी तरह पसंद करते रहेंगे ।

  4. जनहित में उपयोगी होगा यदि प्रेषित या अवगत काने का कष्ट करेंगी – कृपया उचारण शुद्धि की दृष्टि से शिव तांडव क्र प्रथक 2 शब्द संधि तोड़ कर लिखने की कृपा करना चाहेंगी

    • Kiran Bhatia says:

      `शिवताण्डवस्तोत्रम्` में पहले सरल भावार्थ व बाद में श्लोक-प्रति-श्लोक की गई व्याख्या में संधि-विच्छेद एवं शब्दार्थ दिए गए हैं । इति नमस्कारन्ते । धन्यवाद ।

  5. RAKESH GUPTA says:

    आदरनिय ड़ा किरण भाटिया जी ,
    मेरा कोटि कोटि प्रणाम स्वीकार करें ।
    मुझे वह शब्द ही नही मिल रहे जिससे मैं आपका धन्यवाद करुं ।
    आपका कार्य किसी भी टिप्पनी से अत्यन्त परे है ।
    अद्भुत ,
    अति सुंदर ,
    मै भोलेनाथ के भक्तों के चरणों की धूल से भी तुच्छ हुँ ।
    आप नहीं जानती आपने मुझे क्या दे दिया है । मै अति भाग्य शाली हुँ ।
    अगर आप हमारा एक कार्य कर दें तो मैं आपका एहसान जिंदगी भर नही भूल पांऊगा ।
    मुझे शिव अपराध क्षमापं स्तोत्र संधि विच्छेद और अर्थ के साथ अत्यन्त शिघ्र चाहिये शिव रात्रि से पहले ।
    आपकी हमारे ऊपर अति कृपा होगी ।
    MY WHATSAAP NO. IS 09056720267.
    अगर आपसे भेंट हो जाये तो हमारा तो जीवन ही बदल जाये ।
    एक बार फिर से आपको कोटि कोटि प्रणाम ।
    शिव साधक
    राकेश गुप्ता ।

  6. puran lal prajapat says:

    bahoot achha prayas, halanki samjne me kuch kathinta abhi bhi baaki hai
    kripaya sandhi viched kar ke strot bheje, har sabd ka arth ho to aur bhi badhiya

    • Kiran Bhatia says:

      आपका हृदय से धन्यवाद । कृपया आगे के पृष्ठ देखें , सन्धि-विच्छेद , शब्दार्थ , भावार्थ व सविस्तार व्याख्या के साथ कुछ स्थलों पर अन्वय भी दिया गया है ।
      इति शुभम् ।

  7. Ravi Bodade says:

    श्रीमान किरण भाटिया जी,
    आपका शिव तांडव परिचय पढ़कर मन रोमांचित हो उठा. निश्चय ही माता सरस्वती की असीम कृपा की आप पर नित्य वर्षा हो रही है. आपके शब्द अतिशय समर्पक है, आपकी वाणी अमृत जैसी मधुर हैं.
    परम प्रभु शिव शंकर जी की कृपा आप पर सदैव बनी रहें और आप ऐसे ही अपनी वाणी की अमृत वर्षा से हम लालायितो की लालसा को तृप्त करते रहें, यही शंभू चरण में प्रार्थना हैं.

    • Kiran Bhatia says:

      आदरणीय रविजी, शतश: धन्यवाद । शम्भु-कृपा से ही आप जैसे सुधी और सहृदय पाठक हमारे साथ जुड़ जाते हैं तथा उनकी प्रेरणाएं हमारे लिये उत्तरोत्तर सुधार के नये क्षितिज खोलती हैं । भगवान चन्द्रशेखर का वरद हस्त हम सभी पर बना रहे, यही नित्य प्रार्थना है ।इति शुभम् ।

  8. Dr. Suresh nagar says:

    शिव तांडव में बहुत सी जगह १५ श्लोक ह ।।कोनसा सही ह??

    • Kiran Bhatia says:

      ‘शिव-ताण्डवस्तोत्रम्’ के पन्द्रह श्लोक (श्लोक संख्या १ से १३ तथा फिर १६ व १७) तो प्रामाणिक हैं और दो श्लोक संख्या १४ व १५ बाद में किन्हीं अन्य रचयिता या रचयिताओं द्वारा जोड़ दिये प्रतीत होते हैं, और यह प्रक्षिप्त श्लोक अथवा प्रक्षिप्त अंश कहलाते हैं । हमने १४ व १५ केवल इसलिये दिये हैं ताकि पाठकगण यदि किसी स्थान पर इन्हें पायें तो वे श्लोक भी उनकी समझ में आ जायें ।
      इति शुभम् ।

  9. Manoj says:

    कृपया करके , ऐसा ही विग्रह “श्री शिव अमोघ कवच” का करें।
    आपके लेख पढ़कर, स्तोत्र समझना और समझकर पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है, और सरलता हो जाती है
    please ?

    • Kiran Bhatia says:

      नमस्कार मनोजजी । अभी शिवमहिम्न:स्तोत्रम् पर कार्य चल रहा है । आपका विचार नोट कर लिया गया है । धन्यवाद । इति शुभम् ।

  10. Neeraj says:

    Ati sundar aur kushal karya hai apka. Kripaya aisa hi sandhi vicched kiya hua arth Shree Shiv Ramashtkam ka kar dijiye. Meri karbaddh prarthna hai.

    • Kiran Bhatia says:

      धन्यवाद आदरणीय नीरजजी । सम्प्रति शिवमहिम्न:स्तोत्रम् पर कार्य चल रहा है । आपका अनुरोध हमारे ध्यान में है । इति शुभम् ।

  11. sonam says:

    नमस्कार मैम
    ॐ नमः शिवाय
    बहुत ही सुन्दर
    मैम कृपया रुद्राष्टकम एवं शिव पंचाक्षर स्तोत्र की भी व्याख्या दें??

    • Kiran Bhatia says:

      नमस्कार । आपका सुझाव का ध्यान रखेंगे और भगवान रुद्र की कृपा हुई तो अवश्य इस पर अल्पाधिक प्रकाशित कर देंगे । इति शुभम् ।

      • sonam says:

        मैम भगवान रुद्र की तो आप पर विशेष कृपा है. इतना सुन्दर लेखन शिवकृपा के बिना संभव ही नहीं है. मैम रुद्राष्टकम का केवल शब्दार्थ पढ़ने को ही मिलता है. रामचरितमानस की चौपाइयां और श्लोक पढ़ने में जितने सरल लगते हैं, उतने हैं नहीं. लेकिन आपके लेखन को देखकर लगता है कि उसके गूढ़ रहस्य आप ही समझा सकती हैं. कृपया हो सके तो आप अवश्य प्रयास कीजियेगा. आप पर महादेव की कृपा सदा बनी रहे. ??

        • Kiran Bhatia says:

          भगवान रुद्र की असीम कृपा का ही फल है कि आप जैसे प्रबुद्ध पाठक हमारे विनम्र प्रयास को पसन्द करते हैं । धन्यवाद । आप से पहले भी रामचरितमानस-विषयक सुझाव आये हैं । इस ओर गंभीरता से विचार करेंगे । सम्प्रति , श्रीराम कृपा से हनुमान चालीसा की चौपाइयाँ प्रकाशित हो रही हैं । संभवतया आपने देखी होंगी । इति नमस्कारान्ते ।

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