श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई १९
Chaupai 19 Analysisप्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लांघि गये अचरज नांहीं ॥ १९ ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं | ||
मुद्रिका | = | अंगूठी |
मेलिंग | = | रखी |
माहीं | = | मे |
जलधि लांघि गये अचरज नांहीं | ||
जलधि | = | सागर |
अचरज | = | आश्चर्य |
भावार्थ
प्रभु श्रीराम के द्वारा दी गई उनकी अंगूठी आपने मुँह में रखी और सागर को लांघ गये ।
व्याख्या
श्रीरामचंद्रजी ने सीताजी को देने के लिये आपको राम नाम से अंकित अपनी अंगूठी दी थी । तुलसीदासजी कहते हैं कि अंगूठी को अपने मुँह में रख कर आप सागर का सागर पूरा लांघ गये, इसमें आश्चर्य की बात नहीं है । पवनपुत्र का शौर्य और पराक्रम अतुल्य है । बाल्यावस्था से ही उनमें अपार और अथाह बल था, जिसे वे ऋषिशाप के कारण वे भूल गये थे । इस उग्र बल को तब तक बाधित रहना था, जब तक उन्हें इसका स्मरण न करा दिया जाये । रामकारज इस उत्कट बल के पुन: प्रकट होने का प्रयोजन बना । माता सीता के अन्वेषण में निकले हुए वानरदल के सम्मुख समुद्र-लंघन का विकट प्रश्न खड़ा था । उस समय ऋक्षराज जाम्बवान् ने मारुति को उनके बल का स्मरण करवाया । फलत: अमितविक्रम हनुमानजी को अपने सामर्थ्य का ज्ञान हुआ । और फिर वे श्रीराम प्रदत्त अंगूठी मुख में रख कर समुद्र को लांघ गये—चले हरषि हिय धरि रघुनाथा ।
श्रीरामदूत की मन में यह अभिमान कभी नहीं आया कि यह मेरा बल है । उनकी मति में सदा यही आया कि यह मेरे स्वामी रघुवीरजी का बल है। वे सदा निश्छल व निरभिमान रे व रघुवीर का स्मरण करते रहे—बार बार रघुबीर संभारि… । दिव्य रामनामांकित अंगूठी के रूप में भगवान श्रीराम की कृपा व उनकी प्रीति पवनपुत्र के साथ चल रही थी । जिसे राघवेन्द्र अपना लें, उसके लिये इस जगत् में असाध्य क्या है ?
रामनाम से अंकित अंगूठी को मुँह में रखने का एक बहुत सुन्दर अर्थ यह भी निकलता है कि आपके मुँह में राम का नाम था । मुँह में रामनाम हो तो विपत्ति कैसी ? यह परम पावन नाम तो भव-सागर से पार कर देता है, फिर इस सागर की क्या बात है ?
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