महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम्
व्याख्या
सर्वप्रथम श्री शंकराचार्य रचित महिषासुरमर्दिनीस्तोत्रम् का मूलपाठ दे कर, देवी तथा महिषासुर की कथा को संक्षेप में बताया गया है । तत्पश्चात् इस स्तोत्र के सभी इक्कीस श्लोकों का भावार्थ देते हुए पंक्ति प्रति पंक्ति इनकी व्याख्या प्रस्तुत की गई है । इसे सरल और सुबोध बनाने के लिए शब्दार्थ (एवं जहां आवश्यकता प्रतीत हुई वहां संधि-विच्छेद भी) व्याख्या के भीतर ही समाहित कर लिए गए हैं ।
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आपकी यह जानकारी सराहनीय है ।
माँ की महती कृपा है, पूनमजी । इति शुभम् ।
अति सुन्दर व्याख्या। जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
धन्यवाद । भगवती पूर्णकामा हैं, अपने बच्चों की मनोवांछा को पुष्पित-पल्लवित वे स्वयं करती हैं । इति शुभम् ।
बहुत सुंदर व्याख्या ..साधुवाद ..
सिद्ध कुजीकाशलोको का भी कर देती तो अति अनुकम्पा होती …🙏
अभी हाथ में लिया हुआ कार्य समाप्त हो जाने के पश्चात् ही इस पर विचार किया जा सकता है । धन्यवाद ।
सादर प्रणाम🙏देवी मां आपकी हमेशा सहायता करे। मैने आपके द्वारा कि गई व्याख्या को पूरा पढ़ा है। कुछ वाक्यों का आप शब्दार्थ कर दे तो मै आपका आभारी रहूंगा जो कि इसी स्त्रोत से सम्बन्धित है। 1) यदुचितमत्र भवत्युररी कुरूतादुरूता पमपा कुरूते । 2) परम्पदमित्यनुशीलयतो। 3) शत्रुवधोदित ।
आदरणीय जय सिंहहजी, आपकी शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद । आपके द्वारा पूछे गये शब्द हमारे पाठ में नहीं हैं । अस्तु, पहले वाक्यांश का भावार्थ होगा कि जैसे आप उचित समझें वैसे मेरे पाप-ताप को दूर करें । उररी कृत से अभिप्राय है कि स्वीकार करें, दूसरे शब्दों में यह कि उचित समझें और पाप-ताप दूर करना स्वीकार करें । मेरी तुच्छ समझ के अनुसार दूसरे का अर्थ होगा परमपद अर्थात् मोक्ष पाने के लिये अनुशीलन यानि सतत प्रयास करता हुआ एवं शत्रुवधोदित यानि शत्रु के वध के लिये उत्थित । इति शुभम् ।