क. |
मूल पाठ एवं अन्वय |
ख. |
दो शब्द |
श्लोक १ |
महिम्नः पारन्ते परमविदुषो यद्यसदृशी … |
श्लोक २ |
अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयो … |
श्लोक ३ |
मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतस्तव … |
श्लोक ४ |
तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत् … |
श्लोक ५ |
किमीहः किंकायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनम् … |
श्लोक ६ |
अजन्मानोलोकाः किमवयववन्तोsपि जगतामधिष्ठातारं … |
श्लोक ७ |
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति … |
श्लोक ८ |
महोक्षः खट्वांगं परशुरजिनं भस्म फणिनः … |
श्लोक ९ |
ध्रुवं कश्चित्सर्वंसकलमपरस्त्वध्रुवमिदं … |
श्लोक १० |
तवैश्वर्यं यत्नाद्युपरि विरंचिर्हरिरध: … |
श्लोक ११ |
अयत्नादापाद्य त्रिभुवनमवैरं व्यतिकरं … |
श्लोक १२ |
अमुष्य त्वत्सेवासमधिगतसारं भुजवनं … |
श्लोक १३ |
यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद परमोच्चैरपि सती … |
श्लोक १४ |
अकाण्डब्रह्माण्डक्षयचकितदेवासुरकृपा … |
श्लोक १५ |
असिद्धार्था नैव क्वचिदपि सदेवासुरनरे … |
श्लोक १६ |
मही पादाघाताद् व्रजति सहसा संशयपदम् … |
श्लोक १७ |
वियद्व्यापी तारागणगुणितफेनोद्गमरुचि: … |
श्लोक १८ |
रथ: क्षोणी यन्ता शतधृतिरगेन्द्रो धनुरथ … |
श्लोक १९ |
हरिस्ते साहस्रं कमलबलिमाधाय पदयो … |
श्लोक २० |
क्रतौ सुप्ते जाग्रत्त्वमसि फलयोगे क्रतुमतां … |
श्लोक २१ |
क्रियादक्षो दक्ष: क्रतुपतिरधीशस्तनुभृता- … |
श्लोक २२ |
प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं … |
श्लोक २३ |
स्वलावण्याशंसाधृतधनुषमह्नाय तृणवत् … |
श्लोक २४ |
श्मशानेष्वाक्रीड़ा स्मरहर पिशाचा: सहचरा … |
श्लोक २५ |
मन: प्रत्यक्चित्ते सविधमवधायात्तमरुत: … |
श्लोक २६ |
त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवह … |
श्लोक २७ |
त्रयीं तिस्रो वृत्तीस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरा- … |
श्लोक २८ |
भव: शर्वो रुद्र: पशुपतिरथोग्रह: सहमहां- … |
श्लोक २९ |
नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमो … |
श्लोक ३० |
बहुलरजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नम: … |
श्लोक ३१ |
कृशपरिणति चेत: क्लेशवश्यं क्व चेदं … |
श्लोक ३२ |
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे … |
श्लोक ३३ |
असुरसुरमुनीन्द्रैर्रचितस्येन्दुमौले- … |
श्लोक ३४ |
अहरहरनवद्यं धूर्जटे: स्तोत्रमेतत् … |
श्लोक ३५ |
महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुति: … |
श्लोक ३६ |
दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं यागादिका: क्रिया: … |
श्लोक ३७ |
कुसुमदशननामा सर्वगन्धर्वराज: … |
श्लोक ३८ |
सुरवरमुनिपूज्यं स्वर्गमोक्षैकहेतुं … |
श्लोक ३९ |
आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्वभाषितम् … |
श्लोक ४० |
इत्येषा वांगमयी पूजा श्रीमच्छंकरपादयो: … |
श्लोक ४१ |
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर … |
श्लोक ४२ |
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं य: पठेन्नर: … |
श्लोक ४३ |
श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन … |