शिवमहिम्नःस्तोत्रम्

श्लोक ४३

Shloka 43 Analysis

श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन
स्तोत्रेण किल्बिषहरेण हरप्रियेण ।
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेश: ॥ ४३ ॥

॥श्रीशिवमहिम्न:स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन
श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन श्रीपुष्पदन्तमुखपंकज + निर्गतेन
श्रीपुष्पदन्तमुखपंकज = श्रीपुष्पदन्त के मुखकमल (से)
निर्गतेन = निकले हुए
स्तोत्रेण किल्बिषहरेण हरप्रियेण
स्तोत्रेण = स्तोत्र से
किल्बिषहरेण = पापहारी
हरप्रियेण = शिवप्रिय
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन
कण्ठस्थितेन = कण्ठस्थ (करने से)
पठितेन = पढ़ने से
समाहितेन = समाहित चित्त से
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेश:
सुप्रीणित: = प्रसन्न
भवति = होते हैं
भूतपतिर्महेश: भूतपति: + महेश:
भूतपति: = (भगवान्) भूतनाथ
महेश: = महेश्वर

अन्वय

श्रीपुष्पदन्तमुखपंकजनिर्गतेन किल्बिषहरेण हरप्रियेण स्तोत्रेण कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन भूतपति: महेश: सुप्रीणित: भवति ।

भावार्थ

श्रीपुष्पदन्त के मुखकमल से निकले हुए इस पापहारी, शिव के प्रीतिपात्र स्तोत्र को कण्ठस्थ करने से, पढ़ने से एवं इसका ध्यान करने से भगवान् भूतनाथ महेश सदा प्रसन्न होते हैं ।

व्याख्या

यह शिवमहिम्न:स्तोत्रम् का अन्तिम श्लोक हैं । यह गन्धर्वाधिपति द्वारा रचे हुए इस अंतिम श्लोक का भाव यह है कि यह स्तोत्र श्रीपुष्पदन्त के मुखकमल से निकला हुआ है प्रकारान्तर से उनके द्वारा गाया हुआ है तथा शिवजी को यह प्रिय है । इस स्तोत्र की यह महिमा है कि इसे कण्ठस्थ करने से, पढ़ने से या इसका ध्यान करने से सर्व भूतों को सनाथ करने वाले भगवान् महेश्वर सदा प्रसन्न होते हैं । कुछ इसी तरह का भाव पिछले श्लोक में भी मिलता है कि इसे पढ़ने वाला सर्वपापविनिर्मुक्त: हो जाता है अर्थात् यह पापपुंज से मुक्त करने वाला स्तोत्र है । वस्तुत: यह भगवान् हर का प्रिय स्तोत्र है, जिसे भगवान् शिव का वरदान प्राप्त है । इससे जुड़ी कथा के अनुसार शिवजी इसके रचयिता को उसके पाप से मुक्त करके यह वरदान देते हैं कि यह मेरा प्रिय स्तोत्र होगा व इसका पाठ करने वाला मेरी प्रीति का संपादन करेगा । इस तरह इसे किल्बिषहरेण हरप्रियेण कहा । इस स्तोत्र से जुड़ी कथा को दो शब्द शीर्षक से दी गई प्रस्तावना में विस्तार से पढ़ा जा सकता है ।

इस प्रकार भगवान् शिव के चरणकमलों में वांगमयी पूजा को अर्पित करने के उपरान्त स्तोत्रगायक  इस पापहारी परम पवित्र महिम्न स्तोत्र को भक्तजनों के कल्याणार्थ शिव के परम प्रिय स्तोत्र के रूप में वर्णित करते हुए इसका समापन करते हैं ।

श्रीशिवमहिम्न:स्तोत्रम् समाप्त ।

श्लोक ४२ अनुक्रमणिका

Separator-fancy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *