श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई १२
Chaupai 12 Analysisरघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ १२ ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई | ||
रघुपति | = | रामजी (ने) |
कीन्ही | = | की |
बहुत बड़ाई | = | बहुत प्रशंसा |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई | ||
तुम मम | = | तुम मेरे |
प्रिय | = | प्यारे |
भरतहि सम भाई | = | भरत के जैसे भाई हो |
भावार्थ
श्रीरघुपतिजी ने आपकी बहुत प्रशंसा की तथा कहा कि तुम मेरे बहुत प्यारे हो और भरत के समान ही तुम मेरे प्रिय भाई हो ।
व्याख्या
श्रीरघुनाथजी ने आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि हे कपि ! तुम मेरे अतिशय प्रिय हो । तुम मेरे अनुज भरत के ही समान ही मुझे प्रिय हो भाई ! रामजी के अनन्य भक्त व एकनिष्ठ सेवक हनुमानजी पग-पग पर उनका साथ देते हैं व उनके कठिन कार्य सिद्ध करते हैं । लंका जाकर वे जानकीजी का समाचार व संदेश लाकर रामजी को सुनाते हैं तथा लंकादहन का सब वृत्तांत उनसे कह सुनाते हैं । लक्ष्मणजी को शक्ति लगने पर वे संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राण बचाते हैं । उनकी निष्ठा व उनके दास्य-भाव से प्रसन्न रामजी उनकी हृदय से प्रशंसा करते हैं तथा कहते हैं कि तुम मेरे अतिशय प्रिय हो और भरत के समान मेरे प्रिय भाई हो ।
रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदासजी हनुमानजी के लिये कहते हैं—राम जासु जस आपु बखाना अर्थात् हनुमान वे हैं जिनके यश का बखान राम स्वयं करते हैं ।
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