श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई २६

Chaupai 26 Analysis

संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै
संकट तें = विपत्ति से
हनुमान छुड़ावै = हनुमानजी छुड़ाते हैं
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै
मन क्रम बचन = मन, कर्म और वचन (से)
ध्यान जो लावै = जो ध्यान लगाता है

भावार्थ

मन, कर्म और वचन से हनुमानजी का ध्यान जो कोई भी करता है, उसे वे संकट से छुड़ाते हैं ।

व्याख्या

जो कोई भक्त चाहे मन से इन्हें याद करें चाहे इनकी उपासना आदि कर्म करें या फिर वाणी से इनके पवित्र नामों का कीर्तन करे, हनुमानजी सदा ही अपने भक्त के संकटों को दूर करते हैं । जिस घर में हनुमानजी की पूजा होती है, उस घर में अशुभ और अमंगल का प्रवेश नहीं होता । इसीलिये तो हनुमानजी को संकटमोचन और संकटहर्ता कहते हैं । वे लोगों में बल, बुद्धि, विद्या व विक्रम को बढ़ाने वाले हैं । विनयपत्रिका में तुलसीदासजी ने लिखा है कि कपिवर की कृपादृष्टि सकल कल्याण की खान है । उन्हीं के शब्दों में—

तापर सानुकल गिरिजा हर लखन राम अरु जानकी ।
तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकिनी, खानि सकल कल्यान की ॥

अर्थात् कपि (हनुमानजी) की कृपा-दृष्टि, जो कि सब कल्याणों की खान निधि है, जिस पर हो जाये, उसके प्रति शिव, पार्वती, राम, लक्ष्मण व सीता सदा अनुकूल रहते हैं । तात्पर्य यह है कि सदा उसका कल्याण करते हैं ।

चौपाई २५ अनुक्रमणिका चौपाइ २७

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