श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई १८
Chaupai 18 Analysisजुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू | ||
जुग | = | युग |
सहस्र | = | हजार |
जोजन पर | = | योजन (दूरी नापने की एक इकाई) |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू | ||
लील्यो | = | निगल लिया |
ताहि | = | उसे |
मधुर फल | = | मीठा फल |
जानू | = | जान कर |
भावार्थ
हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझ कर आपने निगल लिया ।
व्याख्या
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमानजी ने भूख लगने पर उदित होते हुए सूर्य को, जो उस समय ललाई लिये हुए सुनहरे रंग का होता है, मीठा फल समझ कर निगल लिया । पृथ्वी से सूर्य इतना अधिक दूर होने पर भी आपने अपने बाल्यकाल में ही इस असंभव पराक्रम को खेल ही खेल में कर दिया । गोस्वामीजी ने पृथ्वी से सूर्य की दूरी को यहाँ संकेत में बताते हुए कहा है जुग सहस्र जोजन पर भानु । इससे यह अर्थ ग्रहण किया जाता है कि एक जुग अर्थात् एक युग और सहस्र अर्थात् हज़ार, इन अंकों में ही पृथ्वी से सूर्य की दूर का अनुमान संकेतित है । जोजन अर्थात् योजन, जो दूरी को नापने की इकाई है । और माना जाता है कि एक योजन आठ मील की दूरी के बराबर होता है ।
प्रायः यह शंका की जाती है कि ऐसी अप्राकृतिक घटना कैसे संभव हो सकती है एवं सूर्य के निकट जाना कपोल-काल्पनिक कथा मात्र है । शंका का समाधान हमारे शास्त्रों के पास है । हनुमानजी भगवान रुद्र का अवतार हैं । उनकी देह दिव्य है । यह दिव्य देह पांचभौतिक तत्वों से निर्मित नहीं है । वे कल्पान्तजीवी हैं अर्थात् कल्प के अन्त तक वे रहेंगे । परात्पर ब्रह्म भगवान शिव इस सकल सृष्टि के नियन्ता हैं । निखिल ब्रह्माण्डनायक के अंश से अवतरित हनुमानजी के लिये सूर्य की दूरी अथवा उसकी क्रूर दाहक तेजाग्नि क्या महत्व रखती है ? सूर्य, चन्द्र व अन्य ग्रहों की शक्ति महावीर के आगे नगण्य है । अपनी इस बाललीला से उन्होंने सूर्य को लीलने के लिये बढ़ते हुए राहु को वहां से बलात् हटा कर सूर्य व राहु दोनों को इस सत्य से अवगत कराया कि उनकी शक्तियों पर परमेश्वर का अंकुश है साथ ही रुद्रावतार पवन कुमार ने अपनी अपरिमेय शक्ति का परिचय उन्हें दे दिया ।
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