शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
श्लोक ४०
Shloka 40 Analysisइत्येषा वांगमयी पूजा श्रीमच्छंकरपादयो: ।
अर्पिता तेन देवेश: प्रीयतां मे सदाशिव: ॥ ४० ॥
इत्येषा वांगमयी पूजा श्रीमच्छंकरपादयो: | ||
इत्येषा | → | इति + एषा |
इति | = | इस प्रकार |
एषा | = | यह |
वांगमयी | = | शब्दमयी |
पूजा | = | अर्चा, भेंट |
श्रीमच्छंकरपादयो | → | श्रीमत् + शंकरपादयो: |
श्रीमद् | = | महान् महिमा वाले |
शंकरपादयो: | = | शंकर के चरणों में |
अर्पिता तेन देवेश: प्रीयतां मे सदाशिव: | ||
अर्पिता | = | चढ़ायी |
तेन | = | इससे |
देवेश: | = | देवाधिदेव |
प्रीयताम् | = | प्रसन्न हों |
मे | = | मुझ पर |
सदाशिव: | = | सदा कल्याणकारी भगवान् शिव |
अन्वय
भावार्थ
इस प्रकार महामहिमामय शिव के चरणों में मैंने यह शब्दमयी भेंट चढ़ायी है । देवाधिदेव भगवान् सदाशिव (कृपापूर्वक) इस पूजा से प्रसन्न होवें ।
व्याख्या
शिवमहिम्न:स्तोत्रम् के ४०वें श्लोक में स्तोत्रकार अपने रचे हुए शिवमहिम्न स्तोत्र को अपने परमाराध्य भगवान् शिव के पादपद्मों में अर्पित करते हैं । शिवभक्ति में पूरी तरह निमज्जित कवि का कहना है कि उनके द्वारा रचित यह स्तोत्र भगवान् शिव की शब्दमयी पूजा है । तात्पर्य यह कि यह केवल काव्य नहीं है अपितु भावमय शब्दों से सजी मेरी पूजा है, भेंट है और यह पूजा मैं उनके पादपद्मों में अर्पित करता हूँ । दूसरे शब्दों में यह शब्दमयी भेंट मैं अपने परम मंगलमय परमाराध्य के चरणकमलों चढ़ा रहा हूँ । सदैव निज आश्रितों पर कल्याणवर्षा करने वाले वे देवदेवेश्वर शंकर कृपापूर्वक इस पूजा को स्वीकार करें तथा वे क्षमानिकेतन प्रभु मुझ पर प्रसन्न हों ।
श्लोक ३९ | अनुक्रमणिका | श्लोक ४१ |
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सर अभी कुछ दिनों पहले मैंने एक लेखक से पूछकर और उनके द्वारा लिखित अनुमति देने की बाद ही उनके दो पैराग्राफ्स लिए थे. फिर भी पता नहीं क्यों उन्होंने वह लिखित अनुमति वाले सारे मैसेज डिलीट करके, ट्विटर पर पोस्ट कर दिया कि “इस ब्लॉग ने मेरी अनुमति के बिना मेरे दो पैराग्राफ्स ले लिए”. उन्होंने भी ब्लॉग का url मांगा था. फिर हमने रिप्लाई में उनसे क्षमा मांगते हुए उन्हें उनकी लिखित अनुमति वाला स्क्रीनशॉट दिखा दिया, तो उन्होंने अपना पोस्ट डिलीट कर दिया. सर मेरी नौकरी जाते-जाते बची.
इसलिए सर, अपनी नौकरी के लिए मैं ब्लॉग का url नहीं दे सकती. अब सर यदि आपको आपकी साइट से कुछ पंक्तियाँ या पैराग्राफ्स लेने से किसी भी प्रकार की कोई भी आपत्ति हो, तो कृपया अवश्य कहें, क्योंकि साइट आपकी है और मेहनत भी आपकी, तो आप पहले से ही मना करने का पूरा अधिकार रखते हैं. आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी. यदि आप इस मैसेज का रिप्लाई व्यक्तिगत देना चाहें, तो…. ??
हम भी अपने विचारों की पुष्टि के लिये अनेक ग्रन्थों का अध्ययन करके विभिन्न रचनाकारों की कृतियों से चयनित अंश लेते हैं उनके नामों के उल्तलेख के साथ । आपने ऐसे कथन ‘व्याख्या’ में अवश्य देखे होंगे । अस्तु, हमारी ओर से आप अपने उद्देश्य के लिये चयन किये गये कुछ अंश अथवा पंक्तियां ले सकती हैं । आप सेवाकार्य कर रही हैं, यह उत्तम है । हमारी संस्कृति को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने वाले सहृदय व सजग प्रयासों का हम स्वागत करते हैं । इति शुभम् ।
जी मैम, आपके द्वारा उत्तर देने के लिए हृदय से आभार, आपसे बात करने की बहुत इच्छा थी. दरअसल मैम, आपकी साइट से चयनित अंशों को लेने के साथ ही आपके नाम का भी उल्लेख करना चाहती थीं, लेकिन आपको यह पसंद होगा या नहीं, यह सोचकर बोला नहीं. मैंने अपने फेसबुक वॉल से आपकी साइट के बारे में कई लोगों को बताया भी है, ताकि वे लोग सनातन धर्म से जुड़ी बातों पर मजाक बनाना और अपमान करना छोड़ दें. मैंने उनसे कहा है कि “हो सके तो एक बार यह साइट पूरी पढ़ लो, तुम्हें बहुत सारी बातें समझ आ जाएँगी.” मैं चाहती हूँ कि आपकी इस साइट को सभी लोग पढ़ें क्योंकि जब कोई भगवान का या देवी-देवताओं का अपमान करता है तो मैं वह सहन नहीं कर पाती. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मैम. आप पर ईश्वर की कृपा बनी रहे.
आदरणीय सर, आपने रिप्लाई नहीं दिया…?
Dear Nancy,
Dr. Kiran has replied to your message already. I hope that answers your query.
With regards,
Avinash (Site Admin)