श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई १०

Chaupai 10 Analysis

भीम रूप धरि असुर संहारे ।
रामचंद्र के काज संवारे ॥ १० ॥

भीम रूप धरि असुर संहारे
भीम रूप = भीषण रूप, त्रास देने वाला
धरि = धर कर, बना कर
असुर = राक्षस, दैत्य
संहारे = मारे, नष्ट किये
रामचंद्र के काज संवारे
रामचंद्र के = प्रभु श्रीराम के
काज = कार्य
संवारे = कुशलता से किये

भावार्थ

आपने भीषण रूप धारण किया और असुरों का संहार किया अर्थात् नाश किया । प्रभु श्रीराम के कार्य आपने कुशलता से सही कर दिये ।

व्याख्या

तुलसीदासजी कहते हैं कि आप दुर्दान्त दानवों का संहार करते हुए अपने भीम-भयंकर रूप में आ जाते हैं । दानव-दलन और लंका-दहन करते समय आपने अपना रौद्ररूप धारण किया तथा राक्षसों के काल बन गये । रुद्र के अवतार तो आप हैं ही और इसीसे क्रुद्ध होने पर आपका भैरव विकराल रूप राक्षससैन्य का दिल दहला देता है ।

आपने श्रीरामचंद्रजी के सकल कार्य संपन्न किये । रामसेवा करने के लिये ही शंकरजी ने वानर देह को चुना, जिसे जीवन यापन करने के लिये किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं है । अपने परिवार के साथ ये कपि वृक्ष की शाखाओं पर छलाँगते-कूदते-उत्पात मचाते हुए रहते हैं, अत: इन्हें शाखामृग भी कहते हैं ।  मर्कट-समाज को भोजन और भवन आदि की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है । वृक्षों पर रहते हैं व वृक्षों पर लगे फल-फूल खाते हैं । न वस्त्र न साज-सज्जा न किसी सामग्री का संग्रह तथा न किसी तरह की विशेष चिन्ता ही इन्हें जीवित रहने के लिये करनी पड़ती है । प्रकृति की गोद में चंचल किन्तु सबल वानरजाति सहज और सरल जीवन बिताती थी । इस प्रकार प्रभु के कारज (कार्य) करने के लिये वे वानर रूप में भगवान रुद्र अवतरित हुए । सीता-खोज के कठिन कार्य में वे प्रवृत्त हुए व प्रभु को निश्चिन्त किया । राक्षसों का अपने प्रबल  पराक्रम से नाश किया ।

चौपाई ९ अनुक्रमणिका चौपाइ ११

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