श्रीहनुमानचालीसा

चौपाई ३७

Chaupai 37 Analysis

जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥ ३७ ॥

जै जै जै हनुमान गोसाईं
जै जै जै = जय जय जय
हनुमान गोसाईं = हनुमानजी महाराज
कृपा करहु गुरु देव की नाईं
कृपा करहु = कृपा कीजिये
गुरुदेव की नाईं = गुरुदेव की तरह

भावार्थ

हे हनुमानजी महाराज ! आपकी जय हो, जय, जय हो ! आप गुरुदेव की तरह कृपा कीजिये ।

व्याख्या

परम रामभक्त तुलसीदासजी श्रीराम के अनन्य सेवक व भक्त हनुमानजी की जयजयकार करते हुए उनसे कृपा करने की विनती करते हैं । बिना हनुमान की कृपा के रामभक्ति की प्राप्ति नहीं होती । महावीर जीव पर दया करें तब कहीं जाकर राम के प्रति रुचि जगती है । गोसाईं कहते हैं गोस्वामी को । गो शब्द इन्द्रियों का वाचक है तथा स्वामी का अर्थ है नियंत्रक । अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले महापुरुष को गोस्वामी कहते हैं । हनुमानजी नैष्ठिक ब्रह्मचारी और जितेन्द्रिय हैं । इसके अलावा गोस्वामी या गोसाईं एक सम्मान-सूचक शब्द भी है, जो ज्ञानियों व साधु-महात्माओं के नाम के साथ लगाया जाता है । उत्साहपूर्वक हनुमानजी का बार-बार जयघोष करते हुए तुलसीदासजी उनसे विनती करते हैं कि हे हनुमान गोसाईं ! आप गुरुदेव की भांति मुझ पर कृपा करिये । गुरु के मन में शिष्य के लिए सदा वात्सल्य व करुणा का भाव होता है । गुरु पापी व पुण्यात्मा के बीच कोई पक्षपात न करके तटस्थ रह कर शिष्य के जीवन के अन्धकार को दूर करता है । तुलसीदासजी के विनती में यही भाव निहित है कि आप, हे हनुमान गोसाईं ! मुझे अपना प्रत्यक्ष आशीर्वाद दीजिये जैसे गुरुदेव शिष्य को देते हैं और कृपापूर्वक मेरे पथ को प्रकाशित कीजिये ।

चौपाई ३६ अनुक्रमणिका चौपाइ ३८

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