श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ४
Chaupai 4 Analysisकंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा | ||
कंचन | = | सुनहरा |
बरन | = | वर्ण, रंग |
बिराज | = | शोभायमान |
सुबेसा | = | सुन्दर वेश, सुन्दर बाना |
कानन कुंडल कुंचित केसा | ||
कानन | = | कानों में |
कुंडल | = | बाली, कान का आभूषण |
कुंचित | = | घुंघराले |
केसा | = | केश |
भावार्थ
आपका रंग स्वर्णिम (सुनहला) है और आप सुन्दर वेष में सुशोभित हैं । आपके केश घुंघराले हैं तथा आपके कानों में कुण्डल शोभायमान हो रहे हैं ।
व्याख्या
इस चौपाई में तुलसीदासजी बजरंगबली के अंगों की सुन्दर छटा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि आपकी देह का रंग कनक-सा सुनहला है, केश घुंघराले हैं, कानों में कुण्डल दमक रहे हैं और आपका वेश मनोरम है । इस प्रकार हनुमानजी के दर्शन से गोस्वामीजी धन्य हो जाते हैं । कंचन का अर्थ स्वर्ण है और बरन शब्द वर्ण शब्द का अपभ्रंश (बिगड़ा हुआ) रूप है, जिसका अर्थ होता है रंग । रामकथाओं में हनुमानजी का रंग उदित होते हुए बाल-सूर्य सा अरुणिम-स्वर्ण बताया गया है अर्थात् ललाई लिये हुए सुनहरी रंग । हनुमानजी देवता हैं और देवजाति के शिशु मानव-शिशुओं की तरह नहीं होते । हनुमानजी जन्म के समय ही सुन्दर वेष धारण किये हुए व कानों में कुण्डल पहने हुए अवतरित हुए थे ।
चौपाई ३ | अनुक्रमणिका | चौपाइ ५ |