शिवमहिम्नःस्तोत्रम्

श्लोक ३९

Shloka 39 Analysis

आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्वभाषितम् ।
अनौपम्यं मनोहारि शिवमीश्वरवर्णनम् ॥ ३९ ॥

आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्वभाषितम्
आसमाप्तमिदं आसमाप्तम् +इदम्
आसमाप्तम् = समाप्ति पर्यन्त
इदम् = यह
स्तोत्रम् = स्तोत्र
पुण्यम् = पुण्य स्वरूप
गन्धर्वभाषितम् = गन्धर्व द्वारा कथित
अनौपम्यं मनोहारि शिवमीश्वरवर्णनम्
अनौपम्यम् = अनुपम
मनोहारी = मनोहर
शिवमीश्वरवर्णनम् शिवम् + ईश्वरवर्णनम्
शिवम् = मंगलकारी
ईश्वरवर्णनम् = ईश्वर-वर्णनात्मक

अन्वय

गन्धर्वभाषितम् इदम् पुण्यम् स्तोत्रम् अनौपम्यम् मनोहारि शिवम् (च) ईश्वरवर्णनम् ।

भावार्थ

गन्धर्व द्वारा कीर्तन किया गया यह पुण्यमय स्तोत्र समाप्ति पर्यन्त अर्थात् समाप्त होने तक, अनुपम, मनोहारी, मंगलकारी एवं ईश्वर-वर्णनात्मक है ।

व्याख्या

शिवमहिम्न:स्तोत्रम् के प्रस्तुत श्लोक में यह निरूपित किया गया है कि गन्धर्व पुष्पदन्ताचार्य द्वारा कीर्तन किया गया अथवा गाया गया यह पुण्यमय स्तोत्र अपनी समाप्ति तक, दूसरे शब्दों में कहें तो आरम्भ से अन्त तक अनौपम्यम् अर्थात् अनुपम है । कोई उपमा इसकी नहीं दी जा सकती । औपम्यम् का कोशगत (शब्दकोश में दिया गया) अर्थ है तुलना, समरूपता, सादृश्य । इसके आगे अनो जोड़ कर अनौपम्यम् शब्द बनता है । अनो एक निषेधवाची अव्यय है, जिससे नहीं का भाव व्यक्त होता है । अत: अनौपम्यम् शब्द का अर्थ होता है, जो अतुल्य है व जिसके समरूप कुछ भी नहीं, अतएव वह अनुपमेय है । इस स्तोत्र को कवि अनुपम बताते हैं, जिसका कारण आगे दिये गये शब्दों में अन्तर्जटित है । वे कहते हैं कि यह स्तोत्र  मनोहारि अर्थात् हृदयहारी है । मनोमुग्धकारी होने के साथ साथ स्तोत्र मंगलकारी भी है । इसीको मणि-कांचन योग कहते हैं । इसमें संदेह को कोई स्थान नहीं कि इस स्तोत्र का पाठ निश्चित ही न केवल पढ़नेवाले या गाने वाले का अपितु सुनने वाले का भी कल्याण करता है ।  इसे शिवम् कह कर इसके शुभत्व को प्रकाशित किया । शिव शब्द स्वयं ही शुभ व सौभाग्य का द्योतक है । भगवान् कपर्दी की कतिपय कथाओं का कस्तूरी-संस्पर्श इस परम पवित्र स्तोत्र को सुरभित करता है ।

आगे गन्धर्वराज कहते हैं कि यह परम पवित्र स्तोत्र परमेश्वर के वर्णन से परिपूर्ण है । सचमुच ही इसमें महादेव की नानाविध लीलाओं का दिग्दर्शन किया गया है । स्तोत्र के आरम्भ में महादेव की अनिर्वचनीय महिमा का भक्ति-निमज्जित गायन किया गया है—महिम्न: पारन्ते…तथा अतीत: पन्थानं तव च महिमा…एवं मधुस्फीता वाच:  तदुपरान्त उनके साधारण व्यवहारोपयोगी साधन जैसे महोक्ष खट्वांगं परशुरजिनम् आदि बतला कर उनके वरद व स्वात्मारामम् रूप को व आगे उनके अनलस्कन्धवपुष: रूप को उकेरा है । कतिपय लीलाओं का कवि ने गायन किया है, जैसे उनकी भक्ति के प्रताप से रावण द्वारा त्रिभुवनमवैर-व्यतिकरम्…करना व उसके द्वारा कैलाश उठाने पर उद्यत होने पर महादेव का अंगूठे के अग्रभाग से दबा देने पर उसे कहीं शरण न मिलना, बाणासुर-पराक्रम, विष-पान कथा, मदन-दहन, जगत् की रक्षार्थ उनका नृत्य करना, त्रिपुर-दहन की भव्यता,विष्णजी को सुदर्शन चक्र प्रदान करना, दक्षयज्ञ-विध्वंस, मोहित ब्रह्माजी पर बाण छोड़ना, अर्धनारीश्वर रूप से पार्वती को संशय में डालना—देहार्धघटनादवैति त्वामद्धा…इत्यादि । इसके बाद योगियों द्वारा अन्तरात्मा में उनके दर्शन तथा उनके अपरिच्छिन्न व प्रणव रूप का वर्णन, उनके नामाष्टक व सर्वरूप-नेदिष्ठ आदि का वर्णन एवं त्रिगुणरूपयुक्त व त्रिगुणातीत रूप का वर्णन आदि से यह स्तोत्र वर्णन-परक व पुण्य-परक हो गया है ।

इस प्रकार गन्धर्वराज पुष्पदन्त ने शिवमहिम्न:स्तोत्रम् को सभी के लिये मनोहर-मंगलकारी बताया है ।

श्लोक ३८ अनुक्रमणिका श्लोक ४०

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