श्रीहनुमानचालीसा
दोहा ३
Doha 3 Analysis![]()
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ ३ ॥
| पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप | ||
| पवनतनय | = | पवन के पुत्र |
| संकट हरन | = | संकट मोचन |
| मंगल मूरति रूप | = | मंगलमय रूप वाले |
| राम लखन सीता सहित, मम हृदय बसहु सुर भूप | ||
| राम लखन सीता सहित | = | राम, लक्ष्मण व सीता के सहित |
| हृदय | = | मन (में) |
| बसहु | = | बस जाइये |
| सुर भूप | = | देवेश्वर |
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भावार्थ
हे पवनपुत्र ! हे संकट मोचन ! हे मंगलमय रूप वाले प्रभो ! आप राम, लक्ष्मण व सीता सहित हृदय में, हे देवाधिपति, बस जाओ ।
व्याख्या

पवन-नन्दन संकटों का नाश करने वाले होने से संकट मोचन नाम से जन जन में प्रिय हैं । वे रामसेवक वैसे भी सर्व मंगलों के करने वाले व दु:खभंजन हैं । वे स्वयं शिव हैं, शिव-अवतार हैं । शिव का एक अर्थ शुभ भी होता है । मारुति की मंगलमय छवि बड़ी शुभ है । श्रीराम दरबार में हनुमानजी ने अपना वक्ष (छाती) चीर कर दिखाया था, जिसमें सीताराम विराजमान थे । उनका मन सदा सीताराममय होता है । तुलसीदासजी विनय करते हैं कि हे देवदेवेश्वर ! श्रीराम, लक्ष्मण व सीताजी सहित आप सदा सदा मेरे हृदय में निवास करें । ऊपर अंतिम चौपाई में भी उन्होंने यही विनती की है कि हे नाथ ! मेरे हृदय में डेरा डाल दें आप ।
श्रीहनुमानचालीसा की व्याख्या समाप्त ।
| चौपाई ४० | अनुक्रमणिका | – |
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नमस्कार महोदया जी, इस दोहे में मुझे ‘मम’ शब्द के बारे में शंका है।
नमस्कार महोदय । आपकी शंका उचित है । ‘मम’ को हटा दिया है । सुधार में सहयोग करने हेतु धन्यवाद ।