श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ५
Chaupai 5 Analysis![]()
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ ५ ॥
| हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै | ||
| हाथ | = | हाथ में |
| बज्र | = | वज्र |
| औ | = | और |
| ध्वजा | = | झंडा |
| बिराजै | = | शोभित है |
| काँधे मूँज जनेऊ साजै | ||
| काँधे | = | कंधे पर |
| मूँज | = | एक तरह की घास |
| जनेऊ | = | जनेऊ |
| साजे | = | सज रहा है |
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भावार्थ
आपके हाथ में ध्वजा शोभित हो रही है और वज्र भी । आपके कन्धे पर मूँज (एक प्रकार की घास) से बना हुआ जनेऊ शोभा पा रहा है ।
व्याख्या

हनुमानजी के एक हाथ में ध्वजा लहरा रही है तथा अपने दूसरे हाथ में वे वज्र उठाये हुए शोभायमान हो रहे हैं । ध्वजा झण्डे को कहते हैं । ध्वजा विजय और गौरव की प्रतीक है । झण्डा ऊंचा रहना विजय का सूचक है और झण्डे का झुकना हार की घोषणा करता है । इसके अलावा अनेक मंगल वस्तु व पदार्थों में ध्वजा-पताका को गिना जाता है ।
इस चौपाई में बज्र से तात्पर्य वज्र से है । वज्र सबसे अधिक शक्तिशाली, कठोर और घातक आयुध (हथियार) है । यह देवताओं के राजा इन्द्र के पास होता है । महावीर भी इसे धारण करते हैं । इसलिये कहा है कि हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । बिराजै का अर्थ है सुशोभित होना । गोस्वामीजी कहते हैं कि हे महावीर ! आपके हाथ वज्र और ध्वजा से विभूषित हैं । और आपने मूँज का जनेऊ धारण किया हुआ है, जो आपके कंधे पर सज रहा है ।मूँज एक प्रकार की घास होती है, जिसके रेशे अथवा धागे का प्रयोग मूंज के जनेऊ को बनाने में किया जाता है । कांधै का अर्थ है कन्धे, किन्तु कांधै कहने से अभिप्राय है कंधे से कटि तक । और साजै का अर्थ है कि सज रहा है । इस पंक्ति का आशय है कि मूंज का जनेऊ आपके कंधे की शोभा बढ़ा रहा है । (वानरवीर की काया पंचभूतात्मक तो है नहीं । वे जन्म के समय ही मूंज का जनेऊ पहने हुए अवतरित हुए थे व उनके हाथ में गदा भी तब थी । ऐसा वर्णन रामकथाओं में आता है ।)
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