श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ९
Chaupai 9 Analysis
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ ९ ॥
| सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा | ||
| सूक्ष्म रूप | = | बहुत छोटा रूप, लघु रूप | 
| धरि | = | धर कर | 
| सियहिं | = | सीता को | 
| दिखावा | = | दिखाया | 
| बिकट रूप धरि लंक जरावा | ||
| बिकट रूप | = | विकट रूप, भयानक रूप | 
| धरि | = | धारण करके | 
| लंक | = | लंका नगरी (को) | 
| जरावा | = | जलाया | 

भावार्थ
आपने सीताजी कोअपना सूक्ष्म रूप दिखाया तथा लंका जलाते हुए विकट रूप धर लिया ।
व्याख्या

गोस्वामीजी कहते हैं कि माता जानकी के सामने जाते समय आप लघु रूप धारण करके गये । केवल तब ही नहीं, अपितु लंका-दहन करते समय आप जो देह बिसाल रूप में आ गये थे, उसे आपने लंका जलाने के बाद दुबारा माता सीता के निकट जाते समय लघु बना लिया — धरि लघु रूप बहोरि । इस प्रकार माता सीता के सम्मुख वे पुत्र की भांति विनीत व छोटे बन कर उपस्थित होते हैं । केवल जब सीताजी को पहलेपहल यह संशय हुआ कि अशोकवाटिका की रखवाली करते हुए भीषण रजनीचर सैनिकों के आगे अकेले कैसे ठहर पायेंगे, तब सीताजी को आश्वासन व विश्वास दिलाने व निश्चिंत करने के लिये उन्होंने अपना पर्वताकार रूप प्रकट किया, जिससे माता सीता सचमुच आश्वस्त हुईं । इस प्रसंग के अलावा वे सदैव सीताजी के सम्मुख पुत्र व सेवक रूप में ही जाते थे ।
गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि विकट रूप धरि राक्षसपुरी लंका का दहन जब आपने किया तो हे वानरवीर ! वह आपके लिये बस एक खेल था—कीन्ह कपि खेला । तब राक्षसों को आतंकित करने वाले आपके देह बिसाल के महाभयानक रूप से लंका के भयभीत राक्षस विकल होकर अपने तात और मात को पुकारने लगे—
तेहि अवसर को हमहि उबारा ॥
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