श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
दो शब्द
Shri Ram Raksha Stotram – An Introduction
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली एवं लोकप्रिय रक्षा-स्तोत्र है । यह केवल स्तुति मात्र नहीं है । अपितु एक पूरा रक्षा-स्तोत्र है, जिसमें विनियोग, ध्यान, रक्षाकवच (प्रत्येक अंग की रक्षा) सभी कुछ सम्मिलित है । इसके साथ ही स्तोत्र के दृष्टा ऋषि ने इसे कैसे प्राप्त किया, उसका वर्णन भी है । इस स्तोत्र के मन्त्र-दृष्टा ऋषि बुधकौशिक हैं । यह रक्षा-स्तोत्र उनके द्वारा रचा हुआ नहीं अपितु केवल लिखा हुआ है, ठीक वैसे ही जैसा इनके स्वप्न में यह स्फुट हुआ था । ऋषि के स्वप्न में भगवान शिव ने इसे प्रकट किया था और उन्हीं की कृपा से प्रात:काल जागने पर ऋषि ने शिव-प्रदत्त इस स्तोत्र को शिवाज्ञानुसार लिख दिया । बुधकौशिक मुनि पुराण-प्रसिद्ध मुनि विश्वामित्र का ही दूसरा नाम है । बुध का अर्थ है जानकार व जागा हुआ । कुशिक वंश में उत्पन्न होने के कारण वे कौशिक मुनि भी कहलाते हैं । इस प्रकार विश्वामित्र का एक अन्य नाम बुधकौशिक भी है । पुराण-प्रसिद्ध ऋषि विश्वामित्र कान्यकुब्ज के राजा गाधि के पुत्र थे । ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के समान ब्रह्मर्षि बनने हेतु तेजस्वी गाधिपुत्र ने कठिन-कठोर तप किया जिसके प्रभाव से क्षत्रियत्व छोड़ कर इन्होंने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया तथा वे ब्रह्मर्षि हुए । ब्रह्म-ऋषित्व प्राप्त होने पर उनका ‘विश्वामित्र’ नाम हुआ । ये ऋग्वेद के अनेक मंत्रों के दृष्टा माने जाते हैं । ब्रह्मगायत्री के ये ऋषि हुए ।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के मन्त्र-देवता श्रीसीता सहित श्रीरामचन्द्रजी हैं । इनसे अपनी सर्वांगीण रक्षा की प्रार्थना इस स्तोत्र में की गई है । रक्षा-स्तोत्रों में देह के एक-एक अवयव का नाम लेकर भक्त अपने आराध्य के सम्मुख पूरी श्रद्धा व विश्वास से अपनी रक्षा की प्रार्थना करता है । ऐसा करने से आराध्य के विभिन्न नामों से जुड़ी उनकी विविध दिव्य लीलाओं का उसे सदा स्मरण रहता है । इस स्तोत्र मे शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं कि मैं सदा मनोरम राम-नाम में ही विचरण करता रहता हूँ, यह सहस्रनाम के तुल्य है । तात्पर्य यह कि शिवजी सदा राम के नाम में निरत रहते हैं, इतना अमोघ है राम का नाम । वज्रपंजर नामक इसके रामकवच में श्रीराम के विभिन्न पुनीत नामों का स्मरण है ।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के पाठ करने के प्रभाव व फल का वर्णन भी यहाँ मिलता है । रामनाम से संरक्षित भक्त के चारों ओर इसके दिव्य प्रभाव से सुरक्षा चक्र अथवा कवच बन जाता है और आपदाओं से उसकी रक्षा करता है । भक्त का प्रभामण्डल सुदृढ़ बनता है । रामनाम से सम्पन्न इस रक्षा के पाठ करने वाले को भू, नभ या पाताल में विचरण करने वाले एवं छदद्मवेष में घूमने वाले जीव देख भी नहीं सकते हैं । राम-राम का घोष यमदूतों को भयभीत करने वाला है । इस स्तोत्र का पाठ पापनाशक व कामनापूरक है । इसके अलावा स्तोत्रपाठी अपने प्रिय प्रभु रामजी को प्रसन्न करके उनकी प्रीति प्राप्त करता है । इस स्तोत्र का पाठ हनुमानजी को भी प्रसन्न करता है ।
बहुत समय से रामरक्षास्तोत्र पर कुछ कार्य करने का भाव मन में था । अब उन अकारण-करुणावरुणालय प्रभु श्रीरामजी की कृपा की अपरिमित वर्षा हुई है । अतएव उनकी चरण-शरण ग्रहण करते हुए इस कार्य का श्रीगणेश किया जा रहा है । मुझ में न तो भक्ति ही है और न ही ज्ञान । केवल यही कहूँगी कि इस दिव्य स्तोत्र के पाठ ने कुछ ऐसी बलवती कामना जगा दी कि अपनी समस्त अक्षमता व अज्ञता को अनदेखा करके कुछ लिखने का दुस्साहस ठान बैठी हूँ । मेरे इस बाल-प्रयास में विद्वज्जन कमियाँ तो बहुत सी पायेंगे । आशा करती हूँ कि सहृदय सुधीजन मेरी त्रुटियों के लिये मुझे कृपापूर्वक क्षमा कर देंगे व अपने सत्परामर्श से मुझे लाभान्वित करेंगे । इति शुभम् ।
जय श्री राम ।
– | अनुक्रमणिका | मूलपाठ |
वास्तव में आप पर भगवान शिव और भगवान श्रीराम की असीम कृपा है. आप जो भी हैं, मैं आपको जानती तो नहीं, लेकिन इतना अवश्य जानती हूं कि आज संसार में आप जैसा कोई दूसरा नहीं. आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हों, आप और आपका परिवार सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहे! जय श्रीराम🙏
कृपया प्रशंसा के अतिरेक को अपथ्य मानें । ॥ ॐ नम: शिवाय ॥
इति शुभम् ।