श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्लोक १०
Shloka 10

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् |
एताम् |
= |
इस (को) |
रामबलोपेताम् |
= |
रामजी के बल से युक्त |
रक्षाम् |
= |
रक्षा स्तोत्र को |
य: |
= |
जो |
सुकृति: |
= |
पुण्यात्मा |
पठेत् |
= |
पढ़े (पढ़ता है) |
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् |
स: |
= |
वह |
चिरायु: |
= |
लंबी आयु वाला |
सुखी: |
= |
सुख से युक्त |
पुत्री |
= |
पुत्र वाला |
विजयी |
= |
जय पाने वाला |
विनयी |
= |
विनयशील |
भवेत् |
= |
होता है |
अन्वय
य: सुकृती रामबलोपेताम् एताम् रक्षाम् पठेत् स: चिरायु सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।
भावार्थ
जो पुण्यशाली व्यक्ति रामबल से संपन्न इस रक्षा-स्तोत्र को पढ़ता है, वह दीर्घायु, सुख से संपन्न, पुत्रसुख पाने वाला, जीत प्राप्त करने वाला व विनयशील होता है ।
व्याख्या
रक्षा-स्तोत्रों में आपादमस्तक शरीर के रक्षण की प्रार्थना अंगों का नाम लेकर की जाती है । इसके अतिरिक्त मानसिक व आध्यात्मिक मंगल के लिये भी अपने आराध्य के भिन्न-भिन्न नामों का उच्चार किया जाता है । इसका उद्देश्य होता है चहुँओर से अपनी सर्वांगीण रक्षा, न केवल शत्रुओं से अपितु उन अज्ञात जीवों व तामसी एवं दुष्ट शक्तियों तथा नकारात्मक ऊर्जाओं से भी, जो हमें दृष्टिगोचर नहीं होतीं ।
यह राम-रक्षा अन्य रक्षा-स्तोत्रों से कुछ भिन्न है । वस्तुत: इसका रंगरूप कर्मकांडीय प्रकार का है । यह मन्त्रात्मक है । वैदिक मन्त्रों की भाँति इसका कोई रचयिता नहीं है, अपितु यह महर्षि बुध कौशिक ( विश्वामित्र मुनि ) के स्वप्न में उन्हें भगवान शिव द्वारा प्रदत्त स्तोत्र है, जिसे मुनि ने ग्रन्थस्थ किया है । उन्होंने इसे रचा नहीं है । वे केवल इसके लेखक हैं । मुनि को स्वप्न में महादेव ने राम-रक्षा का यह स्तोत्र प्रदान करते हुए जो आदेश दिया और प्रात:काल उठ कर मन्त्र-दृष्टा ऋषि कौशिक ने उसे ज्यों का त्यों लिख दिया । महर्षि विश्वामित्र का ही दूसरा नाम कौशिक मुनि हैं । कुश अथवा कुशिक राजा के वंश में उत्पन्न होने के कारण उन्हें कौशिक मुनि भी कहा जाता है । प्रात:काल उठ कर अर्थात् प्रबुद्ध होकर यह स्तोत्र लिखने के कारण इस श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के ऋषि का नाम बुधकौशिक हुआ है । यह मन्त्रस्वरूप रक्षास्तोत्र प्रभु श्रीराम के अमित बल से संपन्न है, अतः:पहली पंक्ति में कहा है एतां रामबलोपेतां रक्षाम् ।
स्तोत्र की दूसरी पंक्ति में लिखा है कि जो कोई सुकृति अर्थात् पुण्यशाली व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करेगा, वह चिरायु (चिर + आयु) होगा अर्थात् लंबे आयुष्य वाला होगा । आयुष्मान होने के अलावा वह सुख व सन्तति को प्राप्त करने वाला होगा । पुत्री का अर्थ यहाँ बेटी नहीं है, अपितु पुत्रयुक्त है, जैसे सुख से युक्त को सुखी कहते हैं, वैसे पुत्र से युक्त व्यक्ति को पुत्री कहा गया है । गहराई में देखा जाये तो स्तोत्रपाठी के लिये यह कहना कि वह पुत्री होगा, इस शब्द से ध्वनित अर्थ यह है कि पाठ करने वाला भक्त संतति (सन्तान), स्त्री व कुटुम्ब के सुख से सँवरा हुआ जीवन पायेगा । और विनयी शब्द से चारित्रिक बल की ध्वनि निकलती है । चरित्रवान् व्यक्ति ही प्रभु का कृपाभाजन होता है ।
तत्पश्चात् स्तोत्र-पाठक के लिये यह कहा है कि वह विजयी व विनयी होगा । प्रकारान्तर से यह कहा कि वह तेजस्वी व दुर्धर्ष होगा । उसके पराक्रम के सम्मुख कोई ठहर न पायेगा । शाखा से शाखा पर कूदने वाले वानर रामबल पा कर प्रबल व अजेय हो गये थे —
राम प्रताप प्रबल कपिजूथा । मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा ॥
—रामचरितमानस— (लंकाकाण्ड)
ऐसे जयदायी हैं राम । फिर यह राम-रक्षा तो उनके भी सेव्य श्रीशंकर द्वारा दी गयी है । इस प्रकार इसकी फलश्रुति और भी महत्वपूर्ण हो गई है । साथ ही इस राम-रक्षा को पढ़ने वाले विनयी होगा, यह भी लिखा है । विनयी शब्द से चारित्रिक बल की उच्चता रेखांकित होती है । इससे अभिप्राय यह भी है कि विजयी हो कर भी वह व्यक्ति विजयमद में चूर होकर मदान्ध नहीं होगा । क्योंकि विजयी केवल वह नहीं, जो भूमि या राज्य को जीतता है, अपितु विजय के क्रूर उन्माद को जीत लेने वाला मनुष्य ही सच्चा विजयी होता है । जीवन के किसी भी क्षेत्र में अथवा कला व क्रीड़ा-जगत् में प्रतिस्पर्धा जीतने वाला भी विजयी कहलाता है और उसका भी दायित्व होता है विनयी बन कर जीत की भव्यता व भद्रता को बनाये रखना । श्लोक में इस आशय की सुगन्ध मिलती है कि इस रामरक्षा को पढ़ने वाले साधक में विनय वर्तमान रहेगा । रामकृपा से उसमें सुमति बनी रहेगी — जहां सुमति तहं सम्पति नाना अर्थात् जहां सुमति है वहाँ अनेक प्रकार की सम्पत्ति रहती है । प्रभु राम ने अपनी विनयपूर्ण वाणी व व्यवहार से शिवधनुष तोड़ने के पश्चात् परशुरामजी का हृदय सीतास्वयंवर-सभा में जीत लिया था । राम स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम हैं, उनके शील के कुछ प्रकाशकण तो स्तोत्रपाठी को मिलने अवश्यम्भावी हैं । इस प्रकार प्रस्तुत श्लोक में राम-रक्षा के पाठ की फलश्रुति वर्णित है ।
