श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्लोक ११
Shloka 11पातालभूतलव्योमचारिणश्चछद्मचारिण: ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्चछद्मचारिण: | ||
पातालभूतलव्योमचारिणश्चछद्मचारिण: | → | पाताल + भूतल + व्योमचारिण: + छद्मचारिण: |
पाताल | = | पाताल लोक, अधोलोक में |
भूतल | = | धरती पर |
व्योमचारिण: | = | (और) आकाश में सहज विचरण करने वाले (जीव) |
छद्मचारिण: | = | छद्मवेश (कपटवेश) में विचरण करने वाले (जीव) |
न दृष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: | ||
न | = | नहीं |
दृष्टुमपि | → | दृष्टुम् + अपि |
दृष्टुम् | = | देखने को |
अपि | = | भी |
शक्तास्ते | → | शक्ता: + ते |
शक्ता: | = | समर्थ, सक्षम |
ते | = | वे |
रक्षितम् | = | रक्षित को |
रामनामभि: | = | राम के नामों द्वारा |
अन्वय
रामनामभि: रक्षितम् पातालभूतलव्योमचारिण: छद्मचारिण: ते दृष्टुम् अपि न शक्ता: ।
भावार्थ
पाताल, धरती और आकाश में सहज विचरण करने वाले एवं छद्मवेश में अथवा कपट वेश में विचरण करने वाले जीव राम के नामों से अभिरक्षित भक्त को देख पाने में ही समर्थ नहीं है ।
व्याख्या

कहावत है, राम से बड़ा राम का नाम । नकारात्मक ऊर्जाओं के लिये पवित्र अन्त:करण से लिये गये रामनाम के कृपा-कवच को भेद पाना संभव नहीं है । सुरक्षित जन को देख तक पाना सम्भव नहीं है । लोक में यह आस्था दृढ़मूल है कि रामनाम के जापक की रक्षा स्वयं उनके परम भक्त व सेवक समीर-सुवन (पवनपुत्र) करते हैं । राम के रक्षक रूप की छटा उनके सभी नामों से छिटकती है । यही इस श्लोक में वर्णित है कि राम के नामों का जापक चहुँओर से संरक्षित व सुरक्षित रहता है ।
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