श्रीहनुमानचालीसा
चौपाई ३०
Chaupai 30 Analysis![]()
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥ ३० ॥
| साधु संत के तुम रखवारे | ||
| साधु संत के | = | सज्जनों के, महात्माओं के |
| तुम रखवारे | = | आप रक्षक हैं |
| असुर निकंदन राम दुलारे | ||
| असुर निकंदन | = | राक्षसों का दलन करने वाले |
| रामदुलारे | = | रामजी के परम प्रिय |
![]()
भावार्थ
साधु व सन्तों की रक्षा आप करते हैं । आप असुरों को मर्दन करते हैं व रामजी के प्यारे हैं ।
व्याख्या

साधु-सन्त जन भोले व सरल होते हैं । वे बहुधा अकेले भी रहते हैं । हे महाबली ! उन्हें आपका ही भरोसा है कि संकट के समय संकटमोचन आकर उनकी रक्षा करेंगे । आप राक्षसों का अन्त करने वाले दानव-दलन हैं अत: हनुमानजी को असुर निकंदन कहा है । निकंदन का अर्थ है मर्दन करना, मार डालना ।
हे वानरवीर ! आप रघुवीरजी के परम प्रिय हैं । रघुनाथजी ने अपने श्रीमुख से आपको सुत अर्थात् पुत्र का पद दिया — सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहिं । अर्थात् हे पुत्र ! यह जान लो कि मैं तुम्हारे ऋण से उऋण नहीं हो सकता । लोक में यह बात सर्वप्रसिद्ध है कि रामजी की कृपा पाने के लिये हनुमानजी को प्रसन्न करना परम आवश्यक है । प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी के प्रति अपने प्रेम भाव को अनेक स्थलों पर व्यक्त किया है और हनुमानजी को अपने गले लगा लिया है ।
| चौपाई २९ | अनुक्रमणिका | चौपाइ ३१ |
![]()