श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
विनियोग:
Viniyogaॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्द: सीता
शक्ति: श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोग: ।
ॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: | ||
अस्य | = | इस |
श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य | → | श्रीरामरक्षास्तोत्र + मन्त्रस्य |
श्रीरामरक्षास्तोत्र | = | श्रीराम रक्षा स्तोत्र |
मन्त्रस्य | = | मन्त्र के |
बुधकौशिक: | = | कुशिक वंश में उत्पन्न मुनि विश्वामित्र |
ऋषि: | = | मन्त्रदृष्टा मुनि (हैं) |
श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति: | ||
श्रीसीतारामचन्द्र: | = | श्री सीताजी सहित रामचन्द्रजी |
देवता | = | देवता, दिव्य शक्ति (हैं) |
अनुष्टुप् छन्द: | = | (और स्तोत्रमन्त्र का) छन्द अनुष्टुप् (है) |
सीता शक्ति: | = | सीताजी मन्त्र शक्ति (प्रेरक शक्ति) (हैं) |
श्रीमान् हनुमान् कीलकं | ||
श्रीमान् हनुमान् कीलकम् | = | श्री हनुमानजी रक्षक (हैं) |
श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे | → | श्रीरामचन्द्र + प्रीति + अर्थे |
श्रीरामचन्द्र | = | श्रीरामचन्द्रजी की |
प्रीति | = | प्रसन्नता |
अर्थे | = | के लिये |
रामरक्षास्तोत्रजपे | = | रामरक्षास्तोत्र के जप में |
विनियोग: | = | उपयोग (है) |
अन्वय
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ऋषि: बुधकौशिक: (अस्ति), देवता श्रीसीतारामचन्द्र: (अस्ति), छन्द: अनुष्टुप् (अस्ति),
शक्ति: सीता (अस्ति), कीलकम् श्रीमान् हनुमान् (अस्ति), श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्र जपे विनियोग: ।
भावार्थ
इस स्तोत्र के ऋषि हैं बुधकौशिक ऋषि, देवता हैं श्रीसीता सहित रामचन्द्रजी । स्तोत्र का छन्द है अनुष्टुप् तथा शक्ति हैं
सीताजी । इस स्तोत्र के कीलक श्रीमान् हनुमानजी हैं । श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिये रामरक्षास्तोत्र के जप में
विनियोग है (उपयोग है) ।
व्याख्या
ॐ के उच्चार के साथ इस श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का विनियोग है । विनियोग से तात्पर्य है काम में लाने से है, उपयोग से है । विनियोग हमें रक्षा-स्तोत्रों में देखने को मिलता है, जिसमें मन्त्रदृष्टा ऋषि का नाम, स्तोत्र के देवता का नाम, छन्द का नाम व कीलक एवं शक्ति का नाम दिया होता है । वेदों के अध्ययन व मन्त्रों के विषय में कहा जाता है कि मन्त्र के ऋषि, देवता, छन्द को जाने बिना मन्त्रों के अर्थ खुलते नहीं है । स्तोत्र अथवा मन्त्र के अर्थ के स्पष्टीकरण के हेतु इनका विनियोग किया जाता है । स्तोत्रपाठ करने वाला भक्त इनका प्रयोग अपने आराध्य की प्रसन्नता के लिये करता है । इसी काम में लाने या उपयोग में लाने को विनियोग की संज्ञा से जाना जाता है । रक्षास्तोत्रों के पाठ करने से पहले विनियोग करने का विधान होता है । प्रत्येक मन्त्र के अपने दृष्टा ऋषि होते हैं, देवता, शक्ति व कीलक होते हैं और मन्त्र किसी न किसी छन्द में बद्ध होता है ।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के मन्त्रदृष्टा ऋषि बुधकौशिक हैं । समाधि की अवस्था में अपनी विशुद्ध प्रज्ञा द्वारा परम चेतना के सत्य का साक्षात्कार (अनुभव) करने वाले ज्ञानी जन ऋषि कहलाये । मन्त्र के ऋषि कहने का भाव है कि जो उस मन्त्र का वक्ता हो । आचार्य श्रीराम शर्मा की पुस्तक ऋग्वेद के अनुसार जो भी जिस मन्त्र का वक्ता है अथवा दृष्टा है वह उस वाक्य का ऋषि है । इस रक्षास्तोत्र के दृष्टा ऋषि बुधकौशिक हैं । बुध का अर्थ है ज्ञानी व प्रबुद्ध व्यक्ति । ऋषि विश्वामित्र को कुशिक वंश में उत्पन्न होने के कारण कौशिक भी कहा जाता है । इसलिये उनका एक नाम बुधकौशिक भी है । वे पहले कान्यकुब्ज के राजा थे । इनके पिता का नाम गाधि था, अत: इन्हें गाधिसुवन भी कहते हैं । मानस-पीयूष ग्रन्थ के अनुसार ये ब्रह्मगायत्री के दृष्टा हैं व ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों के भी दृष्टा हैं । इनके जन्म का नाम ‘विश्वरथ’ था । ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के समान प्रखर तपोबल पाने की महत्वाकांक्षा से उनके साथ स्पर्धा करते हुए तेजस्वी गाधिपुत्र ने घोर तप किया और उसके प्रभाव से क्षत्रियत्व छोड़ कर ब्राह्मणत्व प्राप्त किया । इस प्रकार वे क्षत्रिय होते हुए भी तपस्वी और ब्रह्मर्षि हुए । ब्रह्म-ऋषित्व प्राप्त होने पर उनका विश्वामित्र नाम हुआ ।
मुनि विश्वामित्र ने वन में आश्रम बनाया था । अन्य मुनिजन भी वन में रहते थे । वे वन में जप-तप, योग, यज्ञ आदि करते थे । वहाँ राक्षस उत्पात मचाते, उनके यज्ञ में विघ्न डालते व उन्हें नष्ट कर देते थे । इस प्रकार वे मुनिजनों को पीड़ित करते रहते थे । गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में
अतएव महर्षि विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण के बाल्यकाल में यज्ञादि की रक्षा के हेतु वन में ले जाने के लिये अयोध्यानरेश दशरथजी से उन्हें माँग लिया । वन में जाकर राम ने राक्षसों का वध करके ऋषि-मुनियों के संताप को अपने प्रताप से निवारित किया । विश्वामित्र मुनि ने राम को अनेक आश्चर्यजनक अस्त्र प्रदान किये व शिक्षा दी । वे रघुनाथजी के शस्त्रगुरु थे । वही महर्षि बुधकौशिक अथवा विश्वामित्र श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के ऋषि हैं । ध्यान रखने योग्य बात यह है कि वे इस रक्षा-स्तोत्र के रचयिता या प्रणेता नहीं हैं । वे केवल इसके लेखक हैं, क्योंकि यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा से उनके स्वप्न में प्रकट हुआ था, जिसे शिवजी के आदेशानुसार दृष्टा ऋषि ने प्रात: काल जागने पर वैसा का वैसा ही लिख दिया ।
प्रत्येक रक्षास्तोत्र के अपने देवता होते हैं । मन्त्र के देवता का कहने का अभिप्राय है मन्त्र का विषय । वैदिक ऋषियों ने जिनकी स्तुति की है – जिनका वर्णन किया है, वे उस मन्त्र के देवता कहे जाते है । आचार्य श्रीराम शर्मा का कहना है कि प्रकृति की जिस शक्तिधारा को लक्ष्य करके बात कही गयी है, वही शक्तिधारा मन्त्र-देवता है । वे आचार्य सायण के कथन का उद्धरण देते हुए लिखते हैं कि दीव्यतीति देव: अर्थात् जो मंत्रों के माध्यम से प्रकाशमान हुए , वे ही देव हैं । इस प्रकार सरल शब्दों में कहा जाये तो विनियोग में मन्त्र के देवता शब्द से तात्पर्य है मन्त्र के विषय से । वैदिक मन्त्रों का अर्थ समझने में देवता (विषय) आवश्यक हैं । श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के देवता श्रीसीताजी सहित रामचन्द्रजी हैं । श्री लक्ष्मीजी को कहते हैं, साथ ही यह शब्द ऐश्वर्य, आदर, महिमा, सौन्दर्य, कान्ति, शुभत्व, श्रेष्ठता व बुद्धि का भी वाचक है । रक्षास्तोत्र के देवता को श्रीसीतारामचन्द्र: कहते हुए ऋषि उनकी महिमा व भगवत्ता को रेखांकित करते हुए उनके प्रति अपना आदरभाव व श्रद्धा को व्यक्त करते है ।
इस स्तोत्र की रचना अनुष्टुप छन्द में हुई है व इसकी शक्ति सीताजी हैं । आचार्य श्रीराम शर्मा ने अपनी पुस्तक ऋग्वेद में लिखा है कि ऋषियों ने छन्द में भी देवत्व को पाया । उनके कथनानुसार जो वर्णसमूह मन्त्रों को मूर्त्त रूप देने का कार्य संपन्न करते हैं, वे छन्द कहलाते हैं । वे आगे लिखते हैं कि काव्य के छन्द विशेष में किसी भाव विशेष को व्यक्त करने की सामर्थ्य होती है । शक्ति से तात्पर्य मन्त्र की प्रभाव शक्ति से है, मन्त्र के प्रेरक बल से है । यह सक्रिय शक्ति देवपत्नी मानी जाती है । और यहां प्रभु राम की शक्ति व पत्नी सीताजी हैं ।
कीलक से अभिप्राय होता है रक्षा में तत्पर रहने वाले देवता से अथवा रक्षा करने वाले मन्त्र से । प्रस्तुत स्तोत्र में श्रीमान् हनुमानजी कीलक हैं । हनुमानजी को बुद्धिमतां श्रेष्ठम् कहा जाता है । यहां श्रीमान् हनुमान कहने में आदर के साथ यह अभिप्राय घटित होता है कि बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हनुमानजी इस रक्षासतोत्र के कीलक हैं अर्थात् वे इस स्तोत्र के सावधान प्रहरी हैं । यह स्तोत्र सदैव संरक्षित रहे व लुप्त न हो, साथ ही नकारात्मक शक्तियों से यह स्तोत्र व स्तोत्रपाठी पूरी तरह अप्रभावित रहें, सुरक्षित रहें, इस बात को लेकर वे सदा सन्नद्ध रहते हैं । वे पाठ करने वाले पर प्रसन्न होकर उसे अपनी कृपा-छाया में लेते हैं । प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता प्राप्त हो, इस हेतु पाठक रामरक्षास्तोत्र जप में इसका विनियोग करे । जप में मन्त्र की आवृत्ति होती है ।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् की पवित्रता एवं महत्ता वेदमन्त्रों के समान है, ऋषि इन मन्त्रों के दर्शन करते हैं । वैदिक मन्त्रों में ऋषि, छन्द, देवता व विनियोग अनिवार्य होता है । शक्ति व कीलक का तान्त्रिक दृष्टि से महत्व है । और इन दोनों का स्पर्श इस रामरक्षा स्तोत्र को प्राप्त है । यह स्तोत्र मन्त्र-स्वरूप है ।
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